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Sunday, December 5, 2010

अपंग

आज फिर सुबह 
चाय के साथ 
अकबार  पढ़ रही थी ,
उफ्फ्फ फिर वही खबर 
एक औरत की अस्मत लुटी गयी.....
फिर उसके पुरे एहसास को 
कुचल दिया गया ,
चंद लोग अपनी वेह्शत 
को अंजाम देने के लिए 
न जाने कितनी बहनों
के साथ यह घिनोनी 
हरकत करते है ......
पढ़ कर मन आक्रोश से भर गया 
इतना गुस्सा आया की 
पता नहीं क्या कर दू ,
पर फिर लगा यह सब बेकार ,
पढ़ा दुःख हुआ 
गुस्सा भी आया ,
पर कुछ दिनों मे
सब भूल जाएंगे 
उनमे से मैं भी एक हूँ 
फिर ज़िन्दगी वैसे हि चलने लगेगी ,
आज खुद को पहली बार 
अपंग महसूस कर रही थी.....




रेवा 



6 comments:

  1. बहुत अच्छी प्रस्तुति

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  2. अक्सर हम इस समाज में खुद को अपंग महसूस करते हैं....चाह कर भी कुछ कर नहीं पाते... अब कल की ही बात ले लें बनारस में जो बम धमाके हुए उन्होंने इंसानियत को फिर से शर्मसार कर दिया....
    खैर बहुत ही सुन्दर कविता... बधाई...
    अकबर को अखबार कर लें...

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  3. पर कुछ दिनों मे
    सब भूल जाएंगे ,
    फिर ज़िन्दगी वैसे हि चलने लगेगी ,
    आज खुद को पहली बार
    अपंग महसूस कर रही थी.....




    oh! hatasha--

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  4. इंसानियत को फिर से शर्मसार कर दिया...

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  5. हाँ ये सब बातें इतनी आम हो गयी हैं कि एक ख़तम नहीं होता की दूसरा हावी हो जाता है..
    विडम्बना है इस समाज की..
    "आत्महत्या" लिखी थी मैंने काफी पहले... इसी विषय पर है.. समय मिले तो पढ़िएगा..

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  6. pratik ji shukriya....ji jaroor padhungi

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