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Wednesday, August 29, 2012

मेरे कान्हा

कान्हा तेरे चरणों मे अर्पण है
ये अश्रु के फूल 
क्षमा करना मेरी सब भूल ,
पापिनी  हूँ दुखियारिणी हूँ 
पर हूँ तो  तेरी हि रचना ,
करती हूँ विनती आँखों मे भर नीर 
हरना मेरे ह्रदय की पीर 
चाहे कैसी भी हो तकदीर ,
जब भी टूटी मेरी आस 
तुने ही भरा नया विश्वास 
नव जीवन और उल्लास ,
आज फिर हूँ बहुत निराश 
डर और आशंका से भरी 
है हर  साँस ,
तेरे सिवा कोई नज़र आता नहीं 
दिल का बोझ अब सहा जाता नहीं ,
आंखें मूंदे झोली फैलाइए 
खड़ी हूँ आस लगाये ,
अब देर न कर 
तेरी बेटी तुझे बुलाये ,
या तो तू बुला ले अपने पास 
नहीं तो बना ले अपने                                     
चरणों का दास  !!

रेवा 

पहली बार भगवान की भक्ति पर लिखा है ,मन से आवाज़ आई उसे शब्द दिया है बस 
कुछ भूल हो थो अवश्य बताएं //



15 comments:

  1. बेहद खूबसूरत लिखा हैं

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  2. bhakti ki antrangata ka sahaj prvaha ....lajbab rachana ke liye sadar abhaar reva ji

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  3. बहुत ही सुन्दर दीदी
    हर कम पहली बार होता हैं वो आप करो चाहे कोई और
    आपको बहुत बहुत बधाई इस पोस्ट के लिए

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  4. behtreen prastuti, jai Sree Krishna

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  5. जीवन की भाषा जब जड़ें पकडती हैं तो आध्यात्म मुखरित होता है- बहुत ही बढ़िया

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  6. जब भी टूटी मेरी आस
    तुने ही भरा नया विश्वाश
    नव जीवन और उल्लास ,
    आज फिर हूँ बहुत निराश
    डर और आशंका से भरी है हर साँस ,
    तेरे सिवा कोई नज़र आता नहीं
    दिल का बोझ अब सहा जाता नहीं
    बस थोड़ा सा और धैर्य ! विश्वास की डोर कमजोर ना हो !

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  7. भगवान के प्रति अर्चना ही हो सकती है ... और जो भी उसके प्रति है उसमें भूल तो वो होने नहीं देता ... अच्छी रचना है ...

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  8. ishwar prem me jo bhi likha jata hai usme bhul ho hi nahi sakti , ye to dil ke bhav hai jo shabdon ke madhyam se swarup lete hai

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  9. भक्ति में भूल कैसी रेवा.....
    सहज अभिव्यक्ति है....बहुत सुन्दर...
    बस ये निराशा के भाव टिकने न देना.....

    सस्नेह
    अनु

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  10. madanji bahut bahut shukriya.....jaroor

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