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Tuesday, October 28, 2014

वो शाम



तुम्हारी जादुई बातों ने
फिर याद दिला दिया
वो सिन्दूरी झील के
किनारे की शाम ,
फिर एहसास हो आया
उस मिलन का
जिसमे सिर्फ
मैं और तुम
हाँथो मे कॉफ़ी लिए
बस अपलक एक दूसरे
को निहार रहे थे ,
उस दिन पता चला
कुछ अधूरा था मुझमे
जो तुमसे मिल कर
पूरा हो गया ,
ज़िंदगी मे ये कुछ देर की
मुलाकात ऐसा महसूस करा
सकती है
ये कभी सोचा न था ,
अब कभी तुमसे दुबारा
मिलना होगा की नहीं
ये तो खुदा जाने
पर उस मिलन की
खुशबु आज भी
मेरे रोम रोम में बसी है..........

रेवा

6 comments:

  1. Lajawaab dil me utar gaye ahsaas ..... Behad umdaa..!!

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  2. दिल से लिखी गयी है ..और दिल तक पहुची भी

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  3. बहुत सुन्दर नर्म नाज़ुक मन को भिगोती सी रचना !

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  4. Yadon k saye me ....utre komal ahsaas

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  5. दगा का स्वाद कैसा होता है? एक बार मैं घूमा किया अपने गति के साथ। देखा कि किनारों पर किस तरह कांपते हैं कछुए और नदी की गहराइयों से कराहता है चांद...

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