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Saturday, July 14, 2018

पुल (१)




औरतें अकसर
पुल होती हैं
घर के तमाम
सदस्यों के बीच ...

बुजुर्ग बाप और
अधेड़ उम्र के बेटे के बीच
एक तरफ़ वो बहु
तो दूसरी तरफ बीवी
बातों को बिगड़ने से
बचाने की कोशिश में
कभी एक तरफ़ होती है
कभी दूसरी तरफ
फिर पुल बना
सुधारने की कोशिश
करती हैं घर का माहौल.....

किशोर होते बच्चे
जब नहीं समझते
अपने पापा की बात
और उनका गर्म खून
ज़ोर मरने लगता है.........
वहीँ दूसरी तरफ उनके पापा
देने लगते हैं
अपने समय की दुहाई तो
फिर बन जाती है पुल
बाप और बच्चों के बीच.......

हमारे अपने सपने
हमारी अपनी इच्छायें
जब सर उठाने लगती है तो
हम फिर एक पुल का
निर्माण करतीं है
घर के बजट
घर की ज़िम्मेदारी
और अपने सपनों के बीच.........

ऐसे ही न जाने
कितने अनगिनत पुलों
का निर्माण करते रहते हैं हम
लेकिन
हमारी बनायी पुलों की
एक ख़ासियत ये है की
ये बहुत मजबूत होती है
उन पुलों की तरह नहीं
जो भ्रष्टाचार की वजह से
भर भरा कर गिर जाती हैं .....


#रेवा 

8 comments:

  1. वाह सत्य प्रकट करती रचना 👌👌

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  2. सही कहा आपने

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (16-07-2018) को "बच्चों का मन होता सच्चा" (चर्चा अंक-3034) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    राधा तिवारी

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  4. बेहद सटीक एवं गहन भाव को बड़ी खूबसूरती के साथ इन अंतिम पंक्तियों में लिख दिया है आपने बहुत बढ़िया रेवा जी....:)आभार

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