दिल रूपी धरती कर रही बार-बार गुहार
कब पड़े इस पर बारिश की फुहार ,
ऐसा न हो की धुप की तपिश सहते-सहते
इसमे पड़ जाए दरार ,
यह इतना सख्त हो जाए की
भूल जाए सुहाना प्यार
भूल जाए अपनी हरी भरी दुनिया
चिड़ियों के साथ चहकना
हवा के साथ बलखाना
बारिश की बूंदों के साथ लहलहाना ,
बस रह जाये एक बेजान पहचान !
रेवा