प्यार शब्द खुद मे इतना प्यारा है की इसे किसी परिभाषा की ज़रूरत नहीं ……ये एक एहसास है जो बस महसूस किया जा सकता है,पर इसके साथ ये भी सच है की प्यार की बड़ी बड़ी बातें सभी लोग कर लेते है……पर सच्चा प्यार बहुत कम लोगों के नसीब मे होता है……ये भी माना के प्यार दर्द भी देता है पर अगर ये सच्चा है तो संतुष्टि भी देता है…ऐसा प्यार हमे प्रभु के और करीब ले जाता है …ये मेरी भावनाएं और एहसास , इन्हीं को शब्द देने की कोशिश है मेरी …....
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Thursday, November 19, 2009
Wednesday, November 11, 2009
गृहणी की कथा (वो क्या करे )
गृहणी.....एक लड़की वो जो अपना घर छोड़ कर अपने दोस्तों को छोड़ कर ,एक पुरे अलग परिवेश मे अनजान लोगो के बिच आती है अपने जीवन साथी का हाँथ थामे ,अनेको सपने आँखों मे लिए , वो एक एक कर के सब रिश्तो को समझती , उस घर के सारे रीती रिवाज़ अपनाने की कोशिश करती है धीरे धीरे वो सरे घर का , घर के बढो का ,अपने बच्चो का पति का सबका ध्यान रखने लगती है , सबकी पसंद ना पसंद , दुःख दर्द का बड़े प्यार से ख्याल रखती है
लेकिन यहीं से शुरू होती है उसकी व्यथा , इन सबको उसका फ़र्ज़ समझा जाता है ये तो उसे करना ही है , पर दुसरो के फ़र्ज़ का क्या ??? ये कोई नही सोचता उसकी खुशियाँ ,उसके पसंद ना पसंद ,उसकी इच्छाएँ कोई मायिने नही रखती उसकी भी कोई सोच है, उसका भी अस्तित्व है, पर उसे यह बोला जाता है की "तुम्हे कुछ नही समझ आता तुम अपना काम करो " बस वो सारा दिन चक्की की तरह सुबह से शाम पिसती रहती है, जो घर छोड़ आई है उसे वो अपना बोल नही सकती , और इस घर मे भी उसे सम्मान ना मिले तो वो क्या करे ???
ऐसे मे उसे सबसे ज्यादा जरूरत होती है अपने जीवन साथी की, अगर वो एक अच्छे दोस्त की तरह उसके कंधे से कन्धा मिला कर हर मुसीबत मे साथ दे ,चाहे वो घर के लोगो से हो या फ़िर कुछ भी, तो शायद जीना आसन हो जाता है पर ऐसा बहुत काम लोगो के साथ है , और जिनके साथ नही वो क्या करे ?????? या तो इसे ही अपना नसीब मान कर जीती रहे ............या अन्दर ही अन्दर घुटे, उसे क्या चाहियी ....... उसे चाहिए तो सिर्फ़ बहुत सारा प्यार और सम्मान ,पर यही उसे नही मिल पाता तो वो क्या क्या करे ????????
जानती हुं की दुनिया बहुत आगे निकल गई है नारी अब घर बहार दोनों कार्यो को बखूभी निभाने लगी है ,अपने फैसले ख़ुद लेती है ,और लोग उसका साथ देते है बहुत से पति भी अपनी पत्नियों का पुरा ध्यान रखते है ,उन्हें अपनी दोस्त समझते है , पर फ़िर भी यह प्रश्न चिन्ह बहुत सारी गृहणियों के जीवन मे है
रेवा
लेकिन यहीं से शुरू होती है उसकी व्यथा , इन सबको उसका फ़र्ज़ समझा जाता है ये तो उसे करना ही है , पर दुसरो के फ़र्ज़ का क्या ??? ये कोई नही सोचता उसकी खुशियाँ ,उसके पसंद ना पसंद ,उसकी इच्छाएँ कोई मायिने नही रखती उसकी भी कोई सोच है, उसका भी अस्तित्व है, पर उसे यह बोला जाता है की "तुम्हे कुछ नही समझ आता तुम अपना काम करो " बस वो सारा दिन चक्की की तरह सुबह से शाम पिसती रहती है, जो घर छोड़ आई है उसे वो अपना बोल नही सकती , और इस घर मे भी उसे सम्मान ना मिले तो वो क्या करे ???
ऐसे मे उसे सबसे ज्यादा जरूरत होती है अपने जीवन साथी की, अगर वो एक अच्छे दोस्त की तरह उसके कंधे से कन्धा मिला कर हर मुसीबत मे साथ दे ,चाहे वो घर के लोगो से हो या फ़िर कुछ भी, तो शायद जीना आसन हो जाता है पर ऐसा बहुत काम लोगो के साथ है , और जिनके साथ नही वो क्या करे ?????? या तो इसे ही अपना नसीब मान कर जीती रहे ............या अन्दर ही अन्दर घुटे, उसे क्या चाहियी ....... उसे चाहिए तो सिर्फ़ बहुत सारा प्यार और सम्मान ,पर यही उसे नही मिल पाता तो वो क्या क्या करे ????????
जानती हुं की दुनिया बहुत आगे निकल गई है नारी अब घर बहार दोनों कार्यो को बखूभी निभाने लगी है ,अपने फैसले ख़ुद लेती है ,और लोग उसका साथ देते है बहुत से पति भी अपनी पत्नियों का पुरा ध्यान रखते है ,उन्हें अपनी दोस्त समझते है , पर फ़िर भी यह प्रश्न चिन्ह बहुत सारी गृहणियों के जीवन मे है
रेवा
Sunday, November 8, 2009
उसने साथ छोड़ दिया
ऐसा क्यों हुआ
जिस दोस्त को अपना सब कुछ माना
जिसकी दोस्ती को अपना गुरुर समझा
उसी ने साथ छोड़ दिया ........
जिस दोस्त को अपनी ज़िन्दगी के साथ जोड़ा
जिसके साथ दोस्ती की कसमे खायी ,
जिसने हमेशा मुझे सही राह दिखाया
जिसने हमेशा मेरा हौसला बढाया
हर मुश्किल मे साथ दिया
उसी ने साथ छोड़ दिया ........
जिसके लिए मैं हमेशा सबसे से लड़ी
लेकिन उसका साथ न छोड़ा ,
जिसका साथ इतने बरसो का था
नाता न कल परसों का था
उसी ने साथ छोड़ दिया .........
जिसके साथ देखे थे कई सपने
जीवन के कई रंगों को संजोया ,
जीवन की कड़ी धुप मे साथ चले
तुफानो से भी न डरे
अब अचानक उसी ने साथ छोड़ दिया ...........
मेरी आँखों को आंसुओ के सहारे छोड़ दिया
मेरे विश्वाश को पुरी तरह झकझोड़ दिया
मुझे अन्दर तक तोड़ दिया ,
उसने मेरा साथ छोड़ दिया ..........
एक दोस्त (रेवा)
Friday, November 6, 2009
मेरा प्यार
कई बार सोचा अपने प्यार की गहराई कों , उसके एहसासों कों शब्दों में
बयाँ करू,कोशिश भी की पर हर बार ,मेरे ही शब्द ,मुझे परिपूर्ण नही लगे ,यह उसी कड़ी में एक और कोशिश है.........
कैसे बताऊ तुझे की कैसा प्यार है मेरा………
जैसा माँ अपने बच्चे से करती है
वैसा नीरछल प्यार है मेरा ,
जितनी गहराई सागर में होती है
उससे भी गहरा प्यार है मेरा ,
जितनी शीतलता चाँद की चांदनी मे होती है
उस से भी शीतल प्यार है मेरा ,
ऐसे जुड़ गई हूँ तुझसे जैसे ,
फूलों के साथ खुशबू
जैसे दिल के साथ धड़कन ,
ना कोई रिश्ता ना कोई नाता
बस प्यार की डोर से बंध गई हूँ तुझसे /
(रेवा)