किसी ने एक दिन मुझसे प्रशन किया
बता कुछ अपनी ज़िन्दगी के बारे में
मैं सोच में थी की क्या जवाब दू क्या बताऊ
कैसी है ज़िन्दगी ................
क्या बताऊ की हर पल एक अधूरेपन का एहसास है ज़िन्दगी
हर चीज़ मिली है किस्तों में .............
अधुरा बचपन अधुरा यौवन
अधुरा प्यार अधूरी दोस्ती
अधूरी हंसी अधूरी ख़ुशी
अधूरे बिखरे सपने
अधूरे मेरे अपने ........
क्या बताऊ कैसी है ज़िन्दगी ......
आंसू की धार है ज़िन्दगी
उदासी गले का हार है ज़िन्दगी
क्या बताऊ की कैसी है ज़िन्दगी ................
रेवा
प्यार शब्द खुद मे इतना प्यारा है की इसे किसी परिभाषा की ज़रूरत नहीं ……ये एक एहसास है जो बस महसूस किया जा सकता है,पर इसके साथ ये भी सच है की प्यार की बड़ी बड़ी बातें सभी लोग कर लेते है……पर सच्चा प्यार बहुत कम लोगों के नसीब मे होता है……ये भी माना के प्यार दर्द भी देता है पर अगर ये सच्चा है तो संतुष्टि भी देता है…ऐसा प्यार हमे प्रभु के और करीब ले जाता है …ये मेरी भावनाएं और एहसास , इन्हीं को शब्द देने की कोशिश है मेरी …....
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Thursday, May 20, 2010
Monday, May 10, 2010
क्या यही मेरी जिन्दगी है
बहुत इंतज़ार के बाद तुम आये
एक विरहन के तपते ह्रदय में
ठंडी हवा का झोंका बनकर .............
यथासंभव मुझे मेरे स्थान से डिगा कर
परम सुख की अनुभूति बनकर ..........
मैं भी ऐसे रमी तुझमे के भूल ही गयी
की एक दिन तू फिर मुझे उसी
स्थान पर छोड़ कर चला जाएगा .........
फिर उसी इंतज़ार ...उसी तड़प...उसी विरह वेदना
में जलने के लिए ,
उसी आंसुओं के समंदर मैं गोता लगाने
के लिए छोड़ जाएगा ...........
क्या यह इंतज़ार कभी ख़त्म न होगा
क्या मैं सदा ही तड़पती रहूंगी
क्या यही मेरी ज़िन्दगी है ???
रेवा
एक विरहन के तपते ह्रदय में
ठंडी हवा का झोंका बनकर .............
यथासंभव मुझे मेरे स्थान से डिगा कर
परम सुख की अनुभूति बनकर ..........
मैं भी ऐसे रमी तुझमे के भूल ही गयी
की एक दिन तू फिर मुझे उसी
स्थान पर छोड़ कर चला जाएगा .........
फिर उसी इंतज़ार ...उसी तड़प...उसी विरह वेदना
में जलने के लिए ,
उसी आंसुओं के समंदर मैं गोता लगाने
के लिए छोड़ जाएगा ...........
क्या यह इंतज़ार कभी ख़त्म न होगा
क्या मैं सदा ही तड़पती रहूंगी
क्या यही मेरी ज़िन्दगी है ???
रेवा
Sunday, May 2, 2010
क्या लिखूं
क्या लिखूं की आज एहसासों को शब्दों
में ढालने की कोशिश नाकाम हो रही है , क्या लिखूं अपने मन की उलझन या
पीड़ा ,या कुछ प्रशन ?
क्या अपने लिए जीना गुनाह है ?
जब तक आप लोगों के लिए ,
उनकी ख़ुशी के लिए जीयो
में ढालने की कोशिश नाकाम हो रही है , क्या लिखूं अपने मन की उलझन या
पीड़ा ,या कुछ प्रशन ?
क्या अपने लिए जीना गुनाह है ?
जब तक आप लोगों के लिए ,
उनकी ख़ुशी के लिए जीयो
आप अच्छे हो ,
जहाँ आप अपने लिए जीने की कोशिश करो ,
तो आप स्वार्थी हो ,
जहाँ आप अपने लिए जीने की कोशिश करो ,
तो आप स्वार्थी हो ,
वाह री दुनिया ,वाह रे लोग ,
क्या लिखूं उस उलझन को के जब तक प्यार नहीं था जीवन में ,
क्या लिखूं उस उलझन को के जब तक प्यार नहीं था जीवन में ,
तब तक पता ही नहीं था की प्यार क्या होता है ?
अब जब है ,तो पता नहीं सही या गलत ?
क्या लिखू की एक अंतहीन पीड़ा है मन में
हर पल सही होते हुए भी गलत ठहराया जाना ,
हर पल दोस्ती के लिए जान देते हुए भी ,ठुकराया जाना ,
पूरा प्यार न्योछावर करते हुए भी , उसके लिए भीक मांगना ,
जिस से प्यार की आशा हो ,
अब जब है ,तो पता नहीं सही या गलत ?
क्या लिखू की एक अंतहीन पीड़ा है मन में
हर पल सही होते हुए भी गलत ठहराया जाना ,
हर पल दोस्ती के लिए जान देते हुए भी ,ठुकराया जाना ,
पूरा प्यार न्योछावर करते हुए भी , उसके लिए भीक मांगना ,
जिस से प्यार की आशा हो ,
उससे बस ,जिम्मेदारी और तिरस्कार पाना ,
जिससे कोई रिश्ता नाता न हो उससे प्यार मिलना ,
और फिर खुद को हर पल कठघरे में खड़ा करना l
क्या लिखूं की आज एहसासों ने
शब्दों का साथ छोड़ दिया है l
रेवा
जिससे कोई रिश्ता नाता न हो उससे प्यार मिलना ,
और फिर खुद को हर पल कठघरे में खड़ा करना l
क्या लिखूं की आज एहसासों ने
शब्दों का साथ छोड़ दिया है l
रेवा