Pages

Tuesday, November 30, 2010

ये चार दिन

तुम जब सुबह शाम 
सामने दीखते हो तो 
पता नहीं चलता ,
तुम पर गुस्सा करती 
कभी चिढ कर
चिल्ला भी देती हूँ ,
जब कभी  रसोई 
मे मदद करने आते 
हो तो ,गुस्से मे बोलती की 
"तुम सब गन्दा कर दोगे "
 रहने दो ,
शाम की चाय पर तुम्हारा 
इंतज़ार करती ,पर जब 
बनाने बोलते तो ,जूठा
गुस्सा दिखा कर बोलती की 
"तुम तो मुझे ख़ाली देख 
हि नहीं सकते हो 
बस आते हि काम पर
लगा देते हो" ,
आज जब बस चार 
दिनों के लिए बाहर
गए हो तो ,सब याद 
आ रहा है,
बार बार बस यही कहने 
को जी चाह रहा है ..........


"न वादों से न यादों से 
प्यार करती हुं तुझे सांसों से 
इन सांसों की लड़ी तोड़ न देना 
मुझको कभी तनहा छोड़ न देना "



रेवा 


Wednesday, November 24, 2010

स्त्री की कहानी.

वैसे कहने को तो हम 
पूरी ज़िन्दगी जीते हैं ,
बचपन अपने माँ बाप 
के हिसाब से ,
शादी के बाद अपने 
पति, सास ससुर के 
हिसाब से ,
कभी घर के हालत 
की वजह से ,
कभी किसी और 
वजह से ,
कभी इसके  लिए   
कभी उसके लिए,
हर मोड़ पर ,हर जगह 
समझोता करते आयें हैं ,
कहने को हम कहते हैं 
यही ज़िन्दगी है 
खुश हो कर जीओ  ,
पर क्या इन सब के बीच 
हम एक पल एक घडी 
अपनी मर्ज़ी से 
अपनी ख़ुशी के लिए 
अपनी ज़िन्दगी जी पाते हैं ????




रेवा 


Monday, November 15, 2010

ये आंखें

आज फिर आँखों ने
बह  कर अपनी 
कहानी कह दी ,


आज फिर शीशे ने 
इन बिलखती प्यार 
भरी आँखों  को 
देखने से इंकार कर दिया ,


आज फिर आँखों 
ने खुद को 
ज़ल के छीटों 
से शीतल किया ,


आज फिर इसने 
प्रशन नहीं किया की 
यह कब तक 
ऐसे बहती बहती 
अपनी कहानी कहेंगीं ,


शायद पत्थर बन 
कर यह अपनी 
जिंदगानी पूरी करेंगी ............


रेवा 



Wednesday, November 10, 2010

इंतज़ार

नदीया सी 
इठलाती बलखाती 
उछलती कूदती 
बहती रहती थी मै ,
मन मे एक आस लिए 
जीती थी 
सोचा था एक दिन 
तेरे प्यार भरे समुद्र मे 
समां कर ,विलीन हो जाउंगी
अपना सब कुछ 
न्योछावर कर 
बह जाउंगी 
तेरी धारा के साथ ,
मै बहती गयी तुझमे 
पर तुने 
अपना रुख मोड़ लिया 
मुझे तनहा छोड़ दिया 
पर मैं आज भी बहती हूँ 
करती हुं इंतज़ार 
मन में आस लिए की 
कभी न कभी तू 
समझेगा मेरा प्यार |

रेवा 



Monday, November 1, 2010

तुम थे

मेरी कविताओं के प्रेरणा स्रोत तुम थे
कलम भी तुमने दिया था 
उसमे रंग भी तुमने भरे थे  ,
तुझसे मिली एहसासों को 
काग़ज पर उतार
उन्हें शब्दों के मोतियों मे पिरोया करती थी 
उनके साथ हँसा और रोया करती थी ........
पर अब जब तू नहीं साथ तो 
तो सारे फीके हैं  जज्बात
कहाँ से लाऊं शब्द कैसे लिखू 
प्यार की बात ,
सुने है दिन ,सूनी हर रात 
न हँसी है ,न पहले सी बात 
ईट के मकान मे रहती है बस एक आदम ज़ात  .........


रेवा