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Tuesday, March 29, 2011

ज़िन्दगी की सुबह

एक समय था
जब मेरे एहसास
बह कर
पहुँच जाते थे
तुम तक ,
बिन बताये ही
हर लम्हा
महसूस कर
लेते थे
तुम ,
तुम्हे याद कर
बहते हुए
मेरे आंसू
बेकरार कर जाते थे
तुझको ,
पर अब तो
ये आलम है
तुम वो
तुम ही न रहे ,
अलग ही दुनिया
बसा ली है अपनी ,
समय के हाथों
बांध लिया है 
खुदको ,
पर मैं तो 
वहीँ खड़ी हूँ
जहाँ पहले थी ,
इस आस में की
कभी तो
भोर की किरणें
मुझसे हो कर
जाएँगी तुझ तक ,
और हमारे ज़िन्दगी
की सुबह
फिर मुस्कुरायेगी....


रेवा  

Wednesday, March 16, 2011

मै क्या करू ?

आँखों के रास्ते जब
एहसास बहने लगे
तो मै क्या करू ,

धड़कने जब
अपनी गति भूल कर
तेज होने लगे
तो मै क्या करू ,

मेरी बाहें जब
तेरे गले  का हार
बनने को तरसे
तो मै क्या करू ,

मेरी साँसों को जब
तेरे आगोश मे ही
सुकून मिले
तो मै क्या करू ,

मै जब
बस तुझमे ही
सामना चाहू
तो मै क्या करू ,

हर तरफ बस 
तू और तेरी खुशबू 
बिखरी रहे 
तो मै क्या करू ,

इन प्यार भरे           
एहसासों को जब 
तू महसूस
ही न कर पाए
तो मै क्या करू ?


रेवा

          

Tuesday, March 15, 2011

मन होता है


मन होता है छुप कर
तेरी बाँहों मे
निकाल दू दिल का
सारा दर्द,
बाँट लू अपने
सारे गम ,

रख के सर तेरे 
कांधे पर
रो लू जी भर ,

न दिल मे फिर
रहे कोई गम
न बचे आंसू
आँखों के पास ,

रह जाए तो
बस एक
प्यार भरा
एहसास ........


रेवा




Tuesday, March 8, 2011

"महिला दिवस "

हर साल 
मानते है हम "महिला दिवस "
पर क्या कुछ बदल
पाते हैं हम ..........

समाज मे वही कुरीतियाँ ,
वही अत्याचार
दोहराए जाते है हर बार
पर क्या कुछ बदल
पाते हैं हम ..........

छोटी बच्चियों के
साथ बलात्कार ,
दहेज़ के लिए प्रताड़ना
रोज सहते  हैं हम
पर क्या कुछ बदल
पाते हैं हम ..........

लड़के की चाह मे
अजन्मी बच्चियों
की हत्या ,
रोज रोज मरते  हैं हम
पर क्या कुछ बदल
पाते हैं हम ..........

घरेलु हिंसा के शिकार ,
परिवार के नाम पर
अपनी इच्छाओं
की  मौत बार बार ,
देखते हैं हम
पर क्या कुछ बदल
पाते हैं हम ..........



रेवा


Friday, March 4, 2011

क्या हम ऐसे ही चुप रहेंगे ?

ये कैसी  है दुनिया
ये कैसे हैं लोग ?
इतने वहशी ,
एक दस साल
की बच्ची जिसके
अभी दूध के दांत
पुरे नहीं टूटे ,
जो अभी इस दुनिया
को जानती नहीं
जानती है थो बस
खेल खिलोने ,
उसकी अस्मत लुटने
की कोशिश ,
जिसे यह भी नहीं पता
की क्या हुआ है उसके
साथ ?
सिर्फ उसकी ही ज़िन्दगी
को नहीं धकेला अँधेरे में
बल्कि उसके माँ बाप
को जीते जी मार डाला ,
जो सोचते है की वो
रक्षा नहीं कर सके
अपनी बच्ची की ,
वो माँ जो रो रो
खुद को और अपनी
बच्ची को मार डालना
चाहती है ,
ये कैसी दुनिया
दे रहे हैं हम अपने
बच्चो को ?
क्यों यह सब रोज
हम पढ़ और सुन कर 
चुप रहते है ?
कल को हमारे बच्चो 
के साथ ऐसा कुछ हुआ 
तो क्या हम ऐसे ही
चुप रहेंगे ?


रेवा