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Saturday, August 27, 2011

स्त्री की विडम्बना ....

कभी जब ढूंढने 
निकलती हूँ खुद को ,
को तो पाती हूँ
अपने अन्दर 
एक मौन एक
एकाकीपन ,
एक लड़की जो
रोज़ खुद से 
लडती  रहती है ,
कभी इस एकाकीपन को
दूर करने के लिए
जुड़ जाती है
लोगों से,
नए रिश्ते बनाती
और उन से आशाएं 
करने लगती है,
हर बार टूटता
है ये भ्रम ,
पर नहीं सुधरती /
 कभी कुछ पाने की 
आशा मे,
कुछ कर गुजरने 
की चाहत मे ,
तड़पती रहती ,
पर अपने परिवार 
की जरूरतों के
आगे कुछ जरूरी 
नहीं लगता ,
या यु हो सकता 
है की ये बहाना 
हो ,कुछ न                                           
कर पाने का ,
शायद 
खुद से जुड़ना ,
खुद को जवाब 
देना , खुद से
प्यार करना ,
नहीं सीख 
पाई ..................

रेवा


Thursday, August 11, 2011

क्या ज़िन्दगी ऐसी होती है?

कितनी शिद्दत से 
चाहा था मैंने ,
के कभी तुम प्यार से
हमारे पास बैठो ,
कुछ अपने दिल 
की बातें कहो ,
कुछ मेरी सुनो
शिकवा शिकायत
ही सही .....
कुछ ऐसे पल 
तो हो ,
जो बस हमारे
तुम्हारे हों \
ज़िन्दगी की भाग 
दौड़ जरूरी है ,
पर इतनी भी नहीं 
की ,उसे समय 
ही न दो
जिसे उसकी सबसे 
ज्यादा जरूरत हों \
कुछ समय दिया भी 
तो बस उलाहने और 
ज़िम्मेदारियाँ निभाने 
के सलाह के नाम ,
क्या ज़िन्दगी
ऐसी होती है ?
क्या दिल ,जज्बात 
ख्याल नाम की
कोई चीज़ नहीं होती ?
जब मन ही खुश न हो 
तो  ज़िन्दगी के ताने 
बाने सुलझाने मुश्किल 
हो जाते हैं /
यह बात मै कभी 
समझा न पाई ,
न कभी तुमने 
समझने की कोशिश 
ही की......
अपने दिल का प्यार 
शायद तुम तक 
पहुचाने मे असमर्थ रही ,
या तुम्हारे दिल मे
प्यार नामक चीज़ की
कोई अहमियत ही नहीं /
जो भी हो
अब तो बस लगता 
है की
जिस बंधन मे
बांध दिया है
भागवान ने ,
उसे निभाने का
नाम ही ज़िन्दगी है............

रेवा 


Wednesday, August 3, 2011

रिश्ता मेरा तुम्हारा .....

जानते हो कई बार 
मैंने तुमसे और
तुमने मुझसे 
पुछा है की ,
ऐसी कौन सी 
बात है तुम में 
की मै तुमसे 
जुड़ गयी और 
तुम मुझसे ,
पर शायद 
इसका जवाब 
न तुम्हारे पास है
और न मेरे पास ,
न हमारे रिश्ते 
का कोई नाम है
न कोई स्वार्थ ,
यह तो बस समर्पण है 
एक दूजे के एहसासों का ..................


रेवा