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Friday, January 27, 2012

इंसानी फितरत

जब जब अकेली होती हूँ
जी भर कर रोती हूँ ,
कैसे बताऊ मन की व्यथा ?
रोज़ टूटती हूँ 
फिर उठ खुद को जोडती हूँ ,
उन्हें सहारा और ताक़त 
देने के लिए मजबूत 
बन जाती हूँ ,
पर उनके व्यव्हार से 
फिर टूट जाती हूँ ,
भगवान ने ऐसी फितरत 
ही बनायीं है इंसान की ,
जब वो  कमज़ोर होता है 
तो उसे प्यार नज़र आता है ,
पर वही जब ठीक  होता है 
तो सब भूल जाता है ,
ये सोचे  बिना की ,
जिसने अपना 
निरछल प्यार बरसाया 
वो तब भी वहीँ था 
और अब भी वहीँ है /


रेवा 


Wednesday, January 11, 2012

क्यों रो पड़ती हूँ

कभी  कभी 
खुद पर ही 
विशवाश नहीं होता ,
जब तुम्हे प्यार भरी 
पाती लिखती हूँ 
और पढ़ती हूँ ,
तो लगता है 
क्या ये मैंने लिखा है ?
क्या इतना प्यार भरा 
होता है दिल मे ,
या सच मे मैं 
पागल हूँ ,
जैसा तुम कहते हो ,
पर सच बताऊ तो
पढ़ कर आंखें 
भर आती है ,
पता नहीं क्यों ?
लिखा तो तुम्हे है
फिर मैं क्यों 
रो पड़ती हूँ  ?

रेवा