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Wednesday, May 30, 2012

काश मैं भी चाँद होती



हर रात जब मैं
अपनी बाल्कनी खोलती हूँ तो
चाँद मुस्कुराते हुए
मुझे चिड़ाता है ,
कभी हँसाता है
कभी समझाता भी है ,
कभी नज़रे चुरा कर
हौले से थपकी दे कर
सुला देता है ,
कभी मुझे अकेलापन महसूस हो तो
अपने होने का एहसास दिलाता है ,
कभी कभी तो अपनी चाँदनी
के साथ होने की वजह से बहुत इतरता है
और तब वो पूरा नज़र आता है,
अपनी चाँदनी की रौशनी
हर तरफ बिखेरता है ,
हाँ पर किसी दिन जब वो
मेरे साथ लूका छीप्पी खेलता है तो
फिर लाख ढुंढ़ो कहीं नज़र नही आता ,
काश! मैं  भी चाँद की तरह होती
बस अपनी चाँदनी के साथ
हर हाल मे खुश होती ,
और दूसरो को भी खुश रखती !

रेवा

Wednesday, May 23, 2012

वाह ! ये पैसा

आज बहुत खुश थी  मै ,
18 साल बाद अपने सबसे प्यारी 
सखी से जो मिलने वाली थी  ,
कितनी बातें करनी थी  उससे 
आह ! लग रहा था 
इतने सालों की बातें 
बस मिनीटो मे  कर डालु ,
हम एक रेस्तौरेंट मे मिले 
पर समय के साथ 
लोग बदल जाते हैं 
सुना तो था 
पर देखा आज ,
पैसे का अहं 
हर बात मे दिखावा ,
अपनी शेखी बगारना 
वो मिलने नहीं बल्कि 
दिखाने आयी थी अपनी अमीरी ,
इस पैसे ने और एक इंसान को 
अपना गुलाम बना लिया ,
दुःख तो  इस बात का है 
की वो मेरी प्यारी सहेली थी /
वाह ! ये पैसा 

रेवा 



Sunday, May 13, 2012

"मदर्स डे "

एक प्रशन मुझे बार- बार सताता है , क्या माँ के सम्मान के लिए हमे एक दिन चाहिए , जिसे हम  " मदर्स डे " कहते हैं ? क्या बाकि 364 दिन हमे उनका सम्मान नहीं करना चाहिए ? कितनी ही दुखद घटनाएं सामने आती है तब हम उनपर ध्यान ही नहीं देते / बस इस एक दिन हम उनका सम्मान करने का दम भरते हैं / आये दिन बच्चे माँ  को  घर से निकाल  कर ओल्ड एज होम भेज देते हैं ,जहाँ वो अपनी ख़ुशी से महरूम , बेगानों के साथ जीवन बिताने पर मजबूर हो जाती हैं , तब हम इस दिन को भूल जातें हैं ? जब उनके साथ दुर्व्यहार करते हैं , उन्हें एक पुराना सामान समझ कर घर के एक कोने तक सिमित रखते हैं , तब इस दिन को भूल जाते हैं ? भूल जाते हैं की कभी इसी माँ ने अपने दुःख सुख भूल कर इतना बड़ा किया , समाज मे सर उठा कर जीने लायक बनाया / हमारी मानसिकता इतनी ओछी क्यों हो गयी है ? क्या हम 365 दिन मदर्स  डे नहीं मना सकते ? उन्हें बच्चो से कुछ नहीं चाहिये , बस प्यार और सम्मान के सिवा / क्या वो भी हम उन्हें नहीं दे सकते ,क्या इस एक दिन उनका सम्मान कर के हम अपनी जिम्मेदारी को पूरा कर रहे हैं ? ये एक बड़ा प्रश्न है / 

Friday, May 4, 2012

विशवाश

आज मन बहुत घबरा रहा है 
दोस्त पर विशवाश डगमगा रहा है ,
जाने क्यों ,
विशवाश टूट न जाये
ये डर सता रहा है ,
विश्वाश की डोर थामे
सालों दोस्ती निभाई  हमने ,
फिर आज क्यों ये डोर 
कमजोर पड़ रही है ,
एक एक कर के सारे रेशे
एक दुसरे का साथ छोड रहे हैं ,
मै तुझे कटघरे मे खड़ा कर रही हूँ
और खुद ही सारे तर्क दे कर 
तुझे कटघरे से मुक्त भी कर रही हूँ !
ये  कैसी इम्तेहान की घडी है ?
मेरे सामने मेरी दोस्त खडी है ,
ऐसा दिन कभी किसी दोस्त की ज़िन्दगी 
में न आये , 
ये दुआ करती हूँ घडी घडी .........


रेवा