हर रात जब मैं
अपनी बाल्कनी खोलती हूँ तो
चाँद मुस्कुराते हुए
मुझे चिड़ाता है ,
कभी हँसाता है
कभी समझाता भी है ,
कभी नज़रे चुरा कर
हौले से थपकी दे कर
सुला देता है ,
कभी मुझे अकेलापन महसूस हो तो
अपने होने का एहसास दिलाता है ,
कभी कभी तो अपनी चाँदनी
के साथ होने की वजह से बहुत इतरता है
और तब वो पूरा नज़र आता है,
अपनी चाँदनी की रौशनी
हर तरफ बिखेरता है ,
हाँ पर किसी दिन जब वो
मेरे साथ लूका छीप्पी खेलता है तो
फिर लाख ढुंढ़ो कहीं नज़र नही आता ,
काश! मैं भी चाँद की तरह होती
बस अपनी चाँदनी के साथ
हर हाल मे खुश होती ,
और दूसरो को भी खुश रखती !
रेवा