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Wednesday, December 21, 2016

शीत





जाने क्यूँ इन शीत के
शुरुआती दिनों मे

मन अजीब सा हो जाता है


दिल का एक ख़ाली कोना
सर उठाने लगता है
उसे जितना समझाने की
कोशिश करती हूँ
वो ऊँन के गोले सा
उतना ही उलझता जाता है.....


एक अनभुझ पहेली

सा

हर रोज़ साथ

चलता रहता है

क्या तुम सुलझा

सकते हो ?


भर सकते हो मेरे दिल का

वो खाली कोना ?

करा सकते हो मेरी

शीत की सुबह को

गुनगुनी धूप सा एहसास ???


रेवा

Friday, December 9, 2016

दो तस्वीर




मैंने इन्द्रधनुष से कुछ रंग चुराया
उनमे तेरे साथ बिताये
पलों को मिलाया
और बनायी
दो तस्वीर
एक तेरी
एक मेरी ,
उन दो तस्वीरों
से फिर रंग चुराया
उसमे मिलाये
सारे गिले शिकवे
और प्यार
फिर बनायी दो तस्वीर
एक तेरी
एक मेरी ,
तस्वीरों को देखा
तो दोनों लगे एक दुजे की पहचान
क्यूंकि तू कुछ मुझ जैसा
हो गया था
और मैं कुछ तुझ जैसी ....... !!

रेवा


Sunday, December 4, 2016

४० पार




आईने  के सामने खड़े हो
आज खुद से
बात करने की कोशिश करी .......
जब गौर से देखा तो
समझ ही नहीं आया की
ये मैं हूँ !!
न पहले सा रंग रूप
न निर्छल हंसी
न वो अल्हड़पन
न जिद्द
न वो बचकानी बातें
न कुछ कर गुजरने की चाह
बस एक उदासी ओढ़े
यथावत अपने काम हो अंजाम
देती एक स्त्री  ,
ये मैं तो हरगिज़ नहीं
फिर ये है कौन !!
ये है ४० पार की वो औरत
जो उम्र के इस पड़ाव पर
अपना वज़ूद तलाश रही है।

रेवा