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Friday, June 2, 2017

चाँद




रोज़ की तरह
आज फिर चाँद ने
खिड़की पर आ कर
आवाज़ लगायी ,
पर आज मुझे
वहाँ न पाकर
आश्चर्यचकित था ,
रोज़ टकटकी लगा कर
इंतज़ार करने वाली
ढेरों बातें करने वाली
आज कहाँ गायब हो गयी ?
उसे क्या पता था
आज वो अपने
चाँद को छोड़
अपने प्रियतम की बाँहों
मे झूल रही है ,
आज चाँद ने
औरों की तरह
उसे भी बेवफा
करार कर तो कर दिया,
पर आज चाँद से
ज्यादा खुश
और कोई नहीं था ,
आखिर उसकी
प्रेयसी अपने प्यार
के साथ जो थी ...........


रेवा


2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (04-06-2017) को
    "प्रश्न खड़ा लाचार" (चर्चा अंक-2640)
    पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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