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Saturday, August 26, 2017

इश्क






आज फिर तुम्हारी याद
बेताहाशा आ रही है...
ऐसा लगता है मानो
दिल में कई
खिड़कियाँ हों
जो एक साथ
खुल गयी है ...
और इन
खिड़कियों से बस
तेरी यादों की
भीनी-भीनी
खुशबू आ रही है,

जानती हूँ
तुम मुझसे मीलों दूर हो 
पर मुझे इस बात का
ज़रा भी गम नहीं की
तुम मेरे साथ नहीं,
बल्कि ये यादें मुझे
सुकून और तुम्हारे प्यार से
ओत-प्रोत कर रही हैं
शायद
इसे ही कहते हैं
इश्क!

रेवा 



Friday, August 18, 2017

जाने कैसे जाने क्यों ??

जाने क्यों
कभी-कभी
ये मन
बावरा बन
उड़ने लगता है
न जाने उसमे
इतना हौसला
कहाँ से आता है कि
अपनी सारी हदें तोड़
हवा से बातें
करने लगता है,

जाने कैसे
कभी-कभी
समुन्दर की
लहरों पर बना
बाँध टूटने लगता है
और लहरें साहिल
की हदें
भूलकर
अविरल
बहने लगती हैं ,

जाने क्यों
कभी-कभी
मेरा मन
खुद से हज़ारों
सवाल करता है
और एक का भी
जवाब न पाकर
टूटने लगता है

जाने कैसे
जाने क्यों ??

Friday, August 11, 2017

बंटवारा

चलो न आज
मुहब्बत बाँट ले
हम दोनों .....
प्यार तुम्हारे नाम
और तन्हाई 
मेरे नाम कर दें ....
जानती हूँ
नहीं सह सकते तुम
बेरुखी ....
नहीं बहा
सकते आँसू ....
रत जगे
नही होते तुमसे .....    
बिस्तर की सलवटों में
नहीं ढूंढ पाते मेरा अक्स
इसलिए
प्यार तुम्हारे नाम
तन्हाई मेरे नाम ......

रेवा

Monday, August 7, 2017

(संस्मरण 2) चाय






हम सब के लिए चाय एक मामूली सी चीज है। जब मन किया पी लिया, नही पसंद आई तो फेंक भी दिया बिना एक पल सोचे। पर चाय एक गरीब के लिए क्या है? ये उससे बेहतर कोई बयां नही कर सकता।
अभी कुछ दिनों पहले शाम को सियालदाह स्टेशन गयी थी बेटे को ट्रेन में बिठाने, ट्रैन आने में अभी कुछ समय था तो हम इन्तज़ार कर रहे थे। शाम का समय था, चाय पीने की इच्छा हो गयी तो मैं और मेरे पति स्टेशन में टी स्टाल ढूंढने लगे, जो पास ही मिल गया।

उससे दो कप चाय ले कर हम दोनों बात करते हुए पीने लगे, इतने में मैंने देखा एक भिखारी पैंतीस - चालीस के करीब का इधर ही आ रहा था, जो की स्टेशन पर सामान्य सी बात थी। वो आया और कूड़ेदान मे हाथ डाला, मुझे लगा कूड़ा ज्यादा है तो उठाने आया होगा। पर मैं कुछ समझ पाती, इससे पहले मैंने देखा उस भिखारी ने तेज़ी से सात - आठ खाली चाय पिये हुए कप के टी-बैग निकाले उन्हें एक कप में निचोड़ा और पी लिया, और जैसे मौज में आया था वैसे ही चला गया। मैं बुत सी खड़ी उस तरफ देखती रह गयी ..... पर जाते - जाते वो अपने साथ मेरे चाय का स्वाद भी ले गया  ....... #ज़िन्दगी

Friday, August 4, 2017

कमियां

ऐसा सुना है मैंने
कमियां ही इन्सान को
इन्सान बनाती हैं
अगर कमी न हो तो
इंसान भी भगवान
जैसा ही हो जाता है ,
तो क्या
"वो मेरी सारी कमियां
नजरअंदाज करता है
मुझे ख़ुदा होने का
एहसास दिलाने के लिए "??

रेवा