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Wednesday, June 27, 2018

शाम


शाम को जब
दिन के तमाम
उलझनों से
फारिग होकर
छत पर टहलने
जाती हूँ तो ,
प्रकृति की छटा
देखते ही बनती है
सूरज अपने बिस्तर पर
विश्राम करने की तैयारी
में  उलझा रहता है ,
तो उधर चाँद उठने को बेताब ....
कहीं लालिमा बिखरी रहती है
तो कहीं एकदम नीला आकाश

पवन भी दिन भर
सूरज की सेवा से मुक्त हो
उन्मुक्त बहने लगता है
और पंछी घर जाने की
खुशी में कलरव
करते नज़र आते हैं
आह ! ये वातावरण मेरा
मन मोह लेता है.....
पर पता है ऐसे समय मुझे
सबसे ज़्यादा क्या याद
आता है ??
तुम ....सिर्फ तुम और
तुमसे जुड़ी तमाम शाम !!!!


रेवा 

17 comments:

  1. बहुत सुंदर
    तुम सिर्फ तुम
    और तुमसे जुड़ी तमाम शाम!!!

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  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 28.06.18 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3015 में दिया जाएगा

    धन्यवाद

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  3. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन पंचम दा - राहुल देव बर्मन और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार। ।

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  4. वाह!!बहुत खूब!

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  5. सुंदर रचना मन की गहराई से उठी।

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  6. प्रकृति तो सदा ही खूबसूरत रही है हमारा ही दृष्टिकोण बदलता रहता है

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    1. सच कहा आपने ...शुक्रिया

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