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Thursday, January 7, 2021

प्रेम



प्रेम ये शब्द 
राग की तरह मन के 
तारों को झंकृत करता है 
ध्यान मग्न योगी 
जैसे ईश्वर के दर्शन पा कर 
भाव विभोर हो जाता है 
वैसा ही है प्रेम 

मेरी समझ में 
प्रेम मानसिक भी होता है और 
दैहिक भी
मानसिक प्रेम हमसफर के साथ 
हो ये ज़रूरी नहीं 
पर दैहिक प्रेम जीवन साथी के  
साथ होता ही है 
ये प्रेम छुअन से उपजता है   
पर तन मन धन और जीवन का साथ देता है 
प्यार इस साथ में भी भरपूर होता है 

पर मानसिक प्रेम में दैहिक की जगह 
ही नहीं होती
इसे समझना और पाना मुश्किल है 
इस प्रेम में 
सारे एहसास अनछुए होते हैं
ये प्रेम ऐसा होता है जैसे 
धड़कन की ध्वनि 
जैसे बांसुरी को होठों में 
लगा कर निकाली गई धुन 
जो जीवन भर के लिए 
मदहोश कर फिर 
विलीन हो जाती है 
ब्रह्माण्ड में कहीं ....

#रेवा