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Tuesday, January 26, 2010

ओस की बूंद








ओस की बूंद सी है
मेरी ज़िन्दगी
सिमटी सकुची
खुद में ,
अकेले तन्हा
पत्ते की गोद
पर बैठी ,
सूर्य की
किरणों के साथ ,
चमकती, दमकती,
इठलाती 
मन में कई
आशाएं जगाती,
हवा के थपेड़ो को
झेलती, सहती 
फिर उसी मिट्टी में
विलीन हो जाने को
आतुर रहती ....
ओस की बूंद सी है
मेरी ज़िन्दगी

रेवा