ओस की बूंद सी है
मेरी ज़िन्दगी
सिमटी सकुची
खुद में ,
अकेले तन्हा
पत्ते की गोद
पर बैठी ,
सूर्य की
किरणों के साथ ,
चमकती, दमकती,
इठलाती
मन में कई
आशाएं जगाती,
हवा के थपेड़ो को
झेलती, सहती
फिर उसी मिट्टी में
विलीन हो जाने को
आतुर रहती ....
ओस की बूंद सी है
मेरी ज़िन्दगी
रेवा