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Thursday, September 30, 2010

अभी बाकी है

कई बार सोचा की कुछ ऐसा लिखूं ,
जो प्यार की परकाष्ठा को बयां कर सके ,
या मन मे भरे दर्द का एहसास करा सके
ऐसा कुछ जिससे मन द्रवित हो ,
आँसू बहाने पर मजबूर हो जाये ....
पर हर बार नाकाम रही ,
शायद अभी प्यार की उस ऊंचाई तक पहुँचना  बाकी है ,
शायद उतने दर्द को महसूस करना अभी बाकी है ,
शायद प्यार मे मरने का ,
और दर्द मे जीने का स्वाद चखना अभी बाकी है ..................

रेवा

11 comments:

  1. यह नाकामी बरकरार रहे, क्योकि तभी तो और ऊँचाई का प्रयास जारी रहेगा. और फिर किसी भी क्षेत्र में कोई भी ऊँचाई अंतिम तो नहीं होती.

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  2. is dard ke aapke paane ka intzaar humein bhi rahega....
    is safar ke liye shubhkaamnayein...
    lekin itna yaad rahe pyar ki us parakashtha par milne wale dard ko bayan nahi kar sakta main...

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  3. Eeshwar na kare aapko aisa koyibhi dard sahna pade...auron ke dard dekh ke hee shayad aap kayi baaten samajh jayen...yahi dua hai!

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  4. लिखते रहें..असर आने लगा है. :)

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  5. hmm....shekharji i agree with u.....lets see i can ever do or not

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  6. आह बहुत खूबसूरत कविता लिखी मनो दिल निचोड़ कर रख दिया हो.

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  7. भगवान जी ने जब अपने भीतर हो रहे बदलाव से प्रकृति को फेलते हुए पाया ,
    तब प्रकृति अस्थिरता को ले भिन्न भिन्न रंग-रूपों को धारण किये फेल रही थी,
    प्रभु ने देखा की प्रकृति तो अपने स्वरुप मै खो, खुद मुझ से भी विमुख हो गई हे,
    एक ही ब्रह्म के दो रूप प्रकृति और पुरुष, खुद मै भेद की खाई बढ़ाते जा रहे थे जी,
    तब भगवान जी ने प्रकृति तत्वों मै खुद को बसाये रहते हुए भी अपने ही ओझ से ,
    अपने इर्दगिर्द 'आकर्षण' का आवरण बना लिए जिसके फल-स्वरुप प्रकृति का कणकण,
    अपने भीतर बैठे आत्म-तत्व की और बहाने लगा , इसी को जगत मै "प्यार" कहा हे!
    अच्छी सी मिनी हमारा चाहने वाला हमारे भीतर बैठा हे, फिर बाहर की भटकन क्यों ?

    दादू !

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  8. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन में शामिल किया गया है... धन्यवाद....
    सोमवार बुलेटिन

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