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Saturday, December 25, 2010

क्यों होता है हमेशा ऐसा ???

गुलबिया पति की रोज मार सहती
ज़िन्दगी जी रही थी ,
रोज आंसु बहाती
पर वो न पिघलता ,
एक दिन ऐसा भी आया 
उसने घर छोड़ने का फैसला कर लिया ,
पति ने दो चार आंसु बहाए
प्यार के दो बोल बोले ,
पिघल गयी वो
पर मन मे कहीं जानती थी वो ,
कल फिर वही होगा , जो पहले होता था
फिर भी मान गयी.......
क्यों ?
क्यों होता है हमेशा ऐसा ???

रेवा

Tuesday, December 21, 2010

मेरे ज़ख़्म

आज किसी ने पूछा 
मेरी ज़िन्दगी का सच
मेरी पूरी कहानी…… 
पता था 
अपने बारे मे 
बताना मतलब
फिर से उन ज़ख्मों को 
कुरेद कर हरा करना
फिर कुछ दिन 
उन घावों मे से
 लहू का रिसना ......
पता है न 
पुराने ज़ख़्म 
भरते नहीं जल्दी
और जिसे बार-बार 
कुरेदा जाये 
वो नासूर बन जाते हैं ........
फिर भी बता दिया ,
खुद भी रोई 
उसे  भी रुला दिया 
पर फिर भी एक 
आन्तरिक ख़ुशी महसूस हुई 
शायद अपना दुःख बांटा और
एक सच्चा इंसान पाया ...........


रेवा .

Sunday, December 19, 2010

क्या है कोई जवाब ??

मेरे सपनों की एक अलग दुनिया है 
मेरी दुनिया है तो मैं खुश हूँ 
उस दुनिया मे ढेरों खुशियाँ हैं 
मेरा प्यार है ,जो  हर पल मेरे साथ रहता है 
मुझे इतना प्यार देता है 
जितना कभी किसी ने किसी से न किया हो ......
पर आजकल मैंने खुद को अपनी दुनिया से दूर कर लिया है 
एक भ्रम मे जीती हूँ 
हंसती तो हूँ 
पर अपना दर्द छुपाने के लिए ,
आंसुओं को कैद कर लिया है ,
पलकों के कैदखाने मे........
पर जब कभी खुद के साथ 
सक्झात्कर होता है 
तो यह आंसू बगावत पर उतर आते हैं ..........
आखिर क्यों डरती हूँ मै अपनी दुनिया मे जाने से ,
क्यों 
जवाब कुछ नहीं मिलता 
बस लगता है 
जब वैसी दुनिया का मिलना नामुमकिन है 
तो क्यों देखूं सपने 
क्यों बहू भावनाओं मे 
क्या है कोई जवाब आपके पास ????




रेवा 

Sunday, December 5, 2010

अपंग

आज फिर सुबह 
चाय के साथ 
अकबार  पढ़ रही थी ,
उफ्फ्फ फिर वही खबर 
एक औरत की अस्मत लुटी गयी.....
फिर उसके पुरे एहसास को 
कुचल दिया गया ,
चंद लोग अपनी वेह्शत 
को अंजाम देने के लिए 
न जाने कितनी बहनों
के साथ यह घिनोनी 
हरकत करते है ......
पढ़ कर मन आक्रोश से भर गया 
इतना गुस्सा आया की 
पता नहीं क्या कर दू ,
पर फिर लगा यह सब बेकार ,
पढ़ा दुःख हुआ 
गुस्सा भी आया ,
पर कुछ दिनों मे
सब भूल जाएंगे 
उनमे से मैं भी एक हूँ 
फिर ज़िन्दगी वैसे हि चलने लगेगी ,
आज खुद को पहली बार 
अपंग महसूस कर रही थी.....




रेवा 



Thursday, December 2, 2010

आज़ादी

प्यार सिखाया तुमने
सोये हुए एहसास जगाये तुमने 
धीरे धीरे हर चीज़ जोड़ा तुमने 
हमे एक दूसरे की हर बात 
पता होने लगी,

दूर होते हुए भी 
नज़दीकी महसूस करने लगे 
तुम कहीं और, और मैं कहीं और 
फिर भी हम समय बांध कर
अलग अलग साथ खाने  लगे
चाय पीने  लगे 
बाहर भी जाते आते तो बता कर 

पर फिर अचानक तुम 
ज्यादा व्यस्त रहने लगे ,
हर बात पर " क्या करूँ बिजी हूँ "
कहने लगे ,
बातें कम हो गयी ,खबर ही न 
रहती एक दूसरे की ,
फिर एक दिन ऐसा आया
तुमने बोला 
" जाओ तुम्हें आज़ाद किया "
क्या सच मे  इसे आज़ादी कहते हैं ??


रेवा