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Monday, January 17, 2011

क्या रिश्ता है मेरा तुझसे

पता नहीं क्यूँ, पता नहीं कैसे ,
जुड़ गयी तुझसे मै,
ऐसी क्या बात है तुझमे 
न हि तुझे देखा , न कभी मिली ,
बस बातों हि बातों मे
पा लिया सब कुछ ,
जीने का हौसला 
प्यार , अपनापन हर कुछ ,
पर फिर भी इस वजह से 
कभी खुद पर गुस्सा आता 
कभी हालात पर ,
दिमाग कोसता रहता मुझको 
प्रशन करता रहता 
गलत ठहराता रहता 
पर न अलग कर पाई खुद को ,
आज भी समझ नहीं आता 
क्या रिश्ता है मेरा तुझसे ,
शायद दोस्ती ,या प्यार ,
या फिर साथ निभाने वाला अजनबी 
क्या ??


रेवा 

5 comments:

  1. पता नहीं क्यूँ, पता नहीं कैसे ,
    जुड़ गयी तुझसे मै,
    ऐसी क्या बात है तुझमे
    न हि तुझे देखा , न कभी मिली ,
    बस बातों हि बातों मे
    पा लिया सब कुछ ,
    जीने का हौसला
    क्या बात है..बहुत खूब....गहरी कशमकश . खूबसूरत अभिव्यक्ति. शुभकामना

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  2. रेवा जी
    नमस्कार !
    ...मन को छू गयी। बधाई।

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  3. पता नहीं क्यूँ, पता नहीं कैसे ,
    जुड़ गयी तुझसे मै,
    ऐसी क्या बात है तुझमे" प्रकृति के इस सबसे रहस्यमय तत्व में ही जीवन का सारा आकर्षण छिपा
    है. "पता नहीं क्यूँ" ये जो अनजानापन है इसकी शायद ही व्याख्या हो पाए.यही हमारे भीतर सारे
    भावों का संचार करता है.पहचान बन जाने के बाद ये सारे भाव स्थिर हो जाते हैं. मनोभावों का बहुत
    ही सुंदर चित्रण है. बधाई .

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  4. सुन्दर शब्दों की बेहतरीन शैली ।
    भावाव्यक्ति का अनूठा अन्दाज ।
    बेहतरीन एवं प्रशंसनीय प्रस्तुति ।

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