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Monday, February 7, 2011

माँ के नाम पाती

माँ , वैसे तो
तेरी याद  सदा हि
सताती है ,
पर आज इस 
बीमारी मे
ज्यादा हि
आ रही है ,
आज मन
हो रहा है की ,
तू फिर मुझे
अपनी गोद
मे लेकर
घंटो बैठी
हनुमान चालीसा
पढ़ती रहे ,
प्यार से मेरे
सर पर हाँथ
फेरती रहे ,
अपने हाँथो
से मुझे खाने मे
प्यार मिला कर खिलाये ,
न खाने पर
डांट लगाये ,
मुझे कमजोर
हो जाने की
बात समझाए ,
माँ तेरी वो
दवा और दुआ
दुनिया की हर
दवा से उपर है,
माँ आजा की तेरी
"मिनी " तड़प
रही है तेरे बिन ............

रेवा


5 comments:

  1. माँ का एक स्पर्श हजार दवाओ से अच्छा है
    बेहतरीन रचना

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  2. Aah! Meree to aankhen bhar aayeen!

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  3. Na ho khud mey bechain itna
    ki dadu ko dukh lage ......

    Mini aap bahut achcha likhti ho ji ,
    my touching appriciations to you .

    ... deep !

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  4. कुछ तो है इस कविता में, जो मन को छू गयी।

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  5. कई दिनों से बाहर होने की वजह से ब्लॉग पर नहीं आ सका
    बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..

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