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Wednesday, August 3, 2011

रिश्ता मेरा तुम्हारा .....

जानते हो कई बार 
मैंने तुमसे और
तुमने मुझसे 
पुछा है की ,
ऐसी कौन सी 
बात है तुम में 
की मै तुमसे 
जुड़ गयी और 
तुम मुझसे ,
पर शायद 
इसका जवाब 
न तुम्हारे पास है
और न मेरे पास ,
न हमारे रिश्ते 
का कोई नाम है
न कोई स्वार्थ ,
यह तो बस समर्पण है 
एक दूजे के एहसासों का ..................


रेवा 




12 comments:

  1. आदरणीय रेवा जी
    नमस्कार !
    बेहतरीन रचना है आप बहुत
    अच्छा लिखती हैं |बहुत बहुत बधाई |

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  2. आपकी ये कविता पसंद आयी.
    धन्यवाद.

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  3. sanjay ji apka bahut bahut shukriya

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  4. न हमारे रिश्ते
    का कोई नाम है
    न कोई स्वार्थ ,
    यह तो बस समर्पण है
    एक दूजे के एहसासों का ..................
    Kitna sundar rishta hoga aisa!

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  5. यह तो बस समर्पण है
    एक दूजे के एहसासों का ..................

    बस इसी को प्रेम कहते है

    सुन्दर कविता

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  6. रेवा जी
    बहुत सुन्दर रचना ....
    शायद वो प्यार ही है जो दो लोगों को एक दूसरे से बांधे रखता है |

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  7. kshamadi,deepakji,kamleshji....aap sab ka bahut bahut shukriya...

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  8. बहुत सुन्दर रचना , बहुत खूबसूरत भावाभिव्यक्ति

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  9. This comment has been removed by the author.

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  10. kuch naa kaho kuch naa kaho
    pehle mujhe chai pilao

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