Pages

Thursday, March 22, 2012

वैसे रह पाए ?

चलो ,एक बार फिर 
वहीँ चलते हैं ,
समुन्दर के किनारे 
गीली रेत पर ,
जहाँ घंटो बैठ कर 
हम दोनों ने नाम लिखा था ,
आती जाती 
उन लहरों के साथ 
कितनी कसमें खायी थी ,
ठंडी हवाओं के साथ 
कितने महकते पल बिताये थे ,
वो रेत अभी भी 
वैसे ही गीली है ,
वो लहरें ,वो हवाएँ 
सब वैसे ही हैं 
पर क्या हम 
वैसे रह पाए ??????

रेवा 

Friday, March 2, 2012

यही मेरा नसीब

क्या कहूँ 
मन कैसा हो रहा है आज ,
सहनशक्ति के सारे बांध 
टूट रहे हैं  ,
नहीं सहा जाता अब 
रोज़ रोज़ आशा भरी 
नज़रों से तुम्हे 
टुकुर टुकुर देखना ,
लगता है आज तो
तुम कुछ मन की बात करोगे  ,
यही पूछ लो शायद 
की क्या "तुमने खाना खाया "
पर नहीं रोज़ की तरह 
आज भी ,
बस एक मौन पसरा है ,
वही तुम्हारा ऑफिस से आना 
खाना खा कर सो जाना ,
न एक नज़र देखना 
न ही बात करना ,
करवटों मे रात 
बीत जाती है ,
पर एक हाँथ के 
फासले पर सोये 
तुम्हे खबर भी नहीं होती ,
हर बार खून के आंसू 
पी कर रह जाती हूँ ,
लगता है कल नया दिन 
नयी शुरुआत ,
पर अब लगता है शायद 
यही मेरा नसीब है 
यही मेरी ज़िन्दगी .............


रेवा