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Sunday, July 15, 2012

हमसफ़र


इतने सालों मे 
तुने कुछ कहा नहीं मुझसे 
पर मैं वो हमेशा  सुनती  रही 
जो सुनना चाहती थी ,
हर जख्म मे मरहम 
खुद ही लगाती रही ,
बिना खवाब दिखाए 
रोज़ एक नया ख्वाब बुनती रही ,
अश्क बहाती रही 
और खुद ही पोछती रही ,
हर नए दिन के साथ 
नयी उम्मीद जगाती रही ,
साल बीतते गए 
जख्म नासूर बन गए ,
अश्क सुख गए  
उम्मीद टूट गयी 
दिल जल कर राख़  हो गया ,
हमसफ़र तो हम बन गए 
पर हम अकेले सफ़र करते रहे 


रेवा 

14 comments:

  1. हमसफ़र तो हम बन गए
    पर हम अकेले सफ़र करते रहे ....
    सोच नहीं मिलते तो शरीर साथ हो कर भी मन अकेला ही रह जाता है .... !!

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  2. हृदयस्‍पर्शी पीड़ा की अभिव्‍यक्ति।

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  3. बहुत ही सहज शब्दों में कितनी गहरी बात कह दी आपने..... खुबसूरत अभिवयक्ति....

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  4. Jab aisee nirasha samne aatee hai to dil toot hee jata hai...

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  5. dont know rewa ji...in which context u wrote this....but....no expectaion..no pain.....

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  6. sansac...i would say expectation is human nature..

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  7. प्रेम की सजा यही तो है ... इकतरफा ...

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  8. दिल में दबी टीस को बयाँ करती सुन्दर शब्द रचना !!

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  9. प्रेम एक दर्द ही तो हैं ...

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  10. हमसफ़र तो मिल जाते हैं लेकिन अपनी-अपनी राह पर अकेले चलते हुए... भावपूर्ण रचना, बधाई.

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