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Tuesday, January 22, 2013

पूंजी

आँखों से आंसु बरबस ही गिरने लगते हैं
किसकी तलाश है , क्या अधूरापन है ?
क्यों इतना तन्हा महसूस होता है
तमाम रिश्तों के बावजूद ,
पर क्या सिर्फ रिश्ते अधूरापन भर सकते हैं  ?
अगर प्यार न हो तो ,
हम ज़िन्दगी जी रहे हैं
न की एक एक दिन काट रहे हैं ,
पर अगर सारी कोशिशों के बावजूद
भी ये अधूरापन न जाये तो ?
रिश्ते को पूरा प्यार ,
पूरा सम्मान दे कर भी
बस तन्हाई और अकेलापन
ही मिले तो ,
आंसुओं का क्या दोष
फिर तो यही हमारी किस्मत
बन जाती है न ,
पर नहीं अब और नहीं
नहीं रोउंगी ,नहीं तरसुंगी
बल्कि खुद को प्यार करुँगी
और यही पूंजी
अपनी बेटी को भी दूंगी /



रेवा 

9 comments:

  1. सुन्दर भाव अभिवयक्ति

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  2. पर नहीं अब और नहीं
    नहीं रोउंगी ,नहीं तरसुंगी
    बल्कि खुद को प्यार करुँगी
    और यही पूंजी
    अपनी बेटी को भी दूंगी /
    je baat <3
    अनमोल अनुभूति की अद्धभुत अभिव्यक्ति !!

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  3. बिलकुल सही खुद और खुद के अपनों से प्यार ,इससे बढ़ कर और कोई पूंजी हो भी नहीं सकती।


    सादर

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  4. सुन्दर प्रस्तुति!
    वरिष्ठ गणतन्त्रदिवस की अग्रिम शुभकामनाएँ और नेता जी सुभाष को नमन!

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  5. रेवा जी.....
    हर शब्द में आपने भावों की बहुत गहरी अभिव्यक्ति देने का सफल प्रयास किया है !!

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  6. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 22 जनवरी 2022 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

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  7. बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति ।

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