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Saturday, March 30, 2013

जाने क्यूं

मेरे पास तेरी खुशबू तो नहीं
फिर भी जाने कैसे महक उठती हूँ मैं ,

आँसू तूने दिए नहीं
फिर भी जाने क्यूं आँखें छलक उठती हैं ,

प्यार तूने भुरपुर दिया
फिर भी जाने क्यूं तड़प उठती हूँ मैं ,

सारी बातें साँझा की तुमसे
फिर भी जाने क्यूं बातें अधुरी रह जाती है ,

हर वक़्त तू साथ है मेरे
फिर भी जाने क्यूं तन्हाई सताती  है ,

हर लम्हा ज़िन्दगी को भरपूर जीने की कोशिश करती हूँ
फिर भी जाने क्यूं मौत आसां लगती है /


रेवा


12 comments:

  1. अधुरा ''मैं''
    अधूरी जिन्दगी
    अधूरे लफ्ज
    अधूरी कविता
    लौट आओ न
    पूर्ण होगा
    सफर जो रहा
    अधुरा ..
    तुम बिन
    --पवन अरोड़ा --

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  2. rewa ji bahut sundar laikhni hai aapki dil ki kalam ban har dard har sukh ka ehsaas deti hai

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  3. बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति,आभार.

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  4. रेवा जी...भावमय करते शब्‍द !!
    दिल से निकली हुई शब्द रचना...

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  5. दिल भी इक जिद पे अड़ा है किसी बच्चे की तरह,
    या तो सबकुछ ही इसे चाहिए, या कुछ भी नहीं!!

    सम्पूर्ण समर्पण या फिर मौत.....
    बहुत सुन्दर रेवा...
    खूब जियो !!!
    सस्नेह
    अनु

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  6. एक अनजाना सा अधूरापन ...जो कभी भरता नहीं है

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  7. Geele kaagaz ki tarah hai...Zindgi apni...
    koi likhta bhi nahi...koi jalata bhi nahi....
    iss kadar akele ho gaye hai hum....
    ki aajkal...koi satata bhi nahi...koi manata bhi nahi.....

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  8. बहुत सुन्दर मर्मस्पर्शी रचना...

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  9. सब कुछ होते हुये भी न जाने क्यों अधूरापन होता है ... अच्छी प्रस्तुति

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