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Saturday, June 1, 2013

ऐ बचपन

ऐ बचपन
आज फिर तेरी याद आयी
फिर हो गयी आंखें नम ,
तड़प उठा मन
जीने को हर वो छण ,
गुड्डे गुडिया की शादी
वो कबड्डी के खिलाड़ी ,
लुका छिप्पी का खेल
वो छोटी सी रेल ,
कभी होती थी रेस
कभी गुड्डी के पेंच ,
माँ को मनाना
थोड़ी देर और खेलने का बहाना ,
उफ़ वो दस पैसे की नारंगी टॉफ़ी
और खट्टे मीठे गोले ,
भैया से झगड़े
पापा से शिकायत
भैया की शामत ,
बात बात पे दुलार
ज़िद और प्यार ,
यहीं तो है अब बस मेरे पास
ऐ बचपन लौट आ न तू एक बार .....................


रेवा

4 comments:

  1. काश !
    केवल आपकी ही ये वाली इच्छा पूरी हो जाती
    हार्दिक शुभकामनायें

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  2. बचपन ...जो हमेशा याद रहता है

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