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Tuesday, July 30, 2013

गृहणी

गृहणी को किस मिट्टी से
गढते हैं भगवान ?
उसका अपना कुछ भी क्यों नहीं होता ?
न उसकी इच्छा, न उसका मन
जब जिसका जैसे मन होता है
वो उस के साथ वैसा ही बर्ताव करता है ,
अगर पति का मन अच्छा नहीं
ऑफिस मे कुछ हुआ या फिर
और कोई बात हो तो  ,
झेलना पत्नी को है
उसकी कडवी बातें और ख़राब मूड दोनों ,
अगर बच्चों का मन अच्छा नहीं तो
झेलना माँ को है ,
अगर सास ससुर को कुछ नागवार गुजरा तो
झेलना बहू को है ,
इन सब मे उसका अपना मन
अपनी इच्छा कुछ मायने रखती है क्या ?
बस खुद को एक अच्छी पत्नी, माँ और बहु
साबित करती रहे ज़िन्दगी भर,
और खुद को भूल ही जाये
तभी ये जीवन चल सकता है सुख शांति से  ,
सदियाँ गुजर गयी
इक्कीसवी सदी के हैं हम लोग
पर एक गृहणी अभी भी वहीँ की वहीँ ,
गृहणी को किस मिट्टी से
गढ़ते हैं भगवान ?????

रेवा



21 comments:

  1. bahut sundar.......... har aurat ke dard ko aapne prastut kiya hai........

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  2. sundar prastuti ..naari jaati ke man ke bhaav kabhi mere blog par bhi padharein .aur pasand aane par join karein meri nai rachna
    Os ki boond: मनी प्लांट ...

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  3. वाह . बहुत उम्दा,

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  4. वाह बहुत खूब लिखा | लाजवाब

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  5. बिल्कुल सटीक अभिव्यक्ति...

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  6. बहुत उम्दा अभिव्यक्ति

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  7. kitana theek likha?Yeh sab to hamaare prti din ke anuhav hai.
    Vinnie

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  8. उम्दा है आदरेया-

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  9. कुछ खोकर सब पा लेते है ,
    सब पाकर कुछ खो देते है।
    क्या खोना है क्या पाना है ,
    नारी ने ही सच जाना है ॥

    बहुत ही अच्छी कविता बधाई

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  10. बहुत ही बढ़िया


    सादर

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  11. ek sachhai...mann ko chhu gayi...bahut khoob Rewa.

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  12. प्रश्न अच्छा है ...
    सुख शांति से गृहस्थी तभी चलती है जब गृहिणी बंधी बंधाई लकीर पर चले , मगर कुछ विरोधों के बावजूद आज गृहिणी को उसके स्वतंत्र व्यक्तित्व के साथ स्वीकारा जाने लगा है , उदहारण आप -हम हैं ना :)

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  13. स्नेह और सब्र की मिट्टी से गढ़ी जाती है औरत...
    मगर सहन करना उसकी नियती न बनायी जाए...

    सस्नेह
    अनु

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  14. संयम, दम और शम यही गढते हैं गृहिणि को

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  15. नारी मन को शब्दों की धार मिल गई ..सोच के साथ ...बहुत खूब

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  16. यह तो ईश्वर को नहीं पता , लेकिन वह हर एक में आत्मबल जरुर भर कर भेजता है

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  17. बहुत सार्थक अभिव्यक्ति

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