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Friday, September 27, 2013

मौन



मन की पीड़ा
मन की उलझने
बढती जा रही हैं निरंतर ,
मन क्लांत
तन शिथिल हो गया है ,
लग रहा है
एक प्रश्न चिन्ह जी रही हूँ मैं,
सब कोशिशे नाकाम हो रही हैं
दिशाहीन सा महसूस हो रहा है ,
अंततः अपने खोल मे सिमट कर
मौन ओढ़ लिया है मैंने ,
शायद कुछ दिनों का मौन
खुद का खुद से साक्षात्कार करवा
कोई राह दिखा सके /

"ऐसे मोड़ पर ले आयी है ज़िन्दगी
हर तरफ मिली है बस रुसवाई "

रेवा

12 comments:

  1. बहुत बढ़िया
    शुभकामनायें आदरणीया-

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  2. बहुत बढ़िया
    शुभकामनायें आदरणीया-

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  3. बिल्कुल सही भाव , मौन में बहुत ताकत होती है, सुन्दर अभिव्यक्ति ।

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  4. सुन्दर.अच्छी रचना.रुचिकर प्रस्तुति .; हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ
    कभी इधर भी पधारिये ,

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  5. रुसवाइयों से डरना क्यों ...यही से एक नई राह निकलेगी

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  6. अँधेरी गली के आगे रौशनी है ,एक नई शुरुयात है
    नई पोस्ट साधू या शैतान
    latest post कानून और दंड

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  7. कुछ भी स्थायी नहीं होता बहना
    धैर्य के पतवार से हर बेड़ा पार
    सुबह होने के पहले रात बहुत काली होती
    हार्दिक शुभकामनायें

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  8. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी का लिंक आज शनिवार (28-09-2013) को ""इस दिल में तुम्हारी यादें.." (चर्चा मंचःअंक-1382)
    पर भी होगा!
    हिन्दी पखवाड़े की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  9. खुद से खुद की बात करना बड़ी बात होती है। नै राह शोध की होती है जीवन से जुडी शोध की। मौन मुखर होता रहता है ,सब कुछ यूं कहता रहता है ,अन्दर बाहर बाहर अन्दर

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