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Wednesday, February 26, 2014

खतों में प्यार (लघु कथा)







खतों का पुलिंदा देख ……रानू को याद हो आयी वो स्मृतियाँ जब पति  बॉर्डर पर तैनात थे , फ़ोन पर नेटवर्क
भी नहीं पकड़ता था वहाँ , अपनी भावनाएं एक दूसरे तक पहुँचाने का सहारा थे मात्र ये पत्र। जब बॉर्डर पर 
थोड़ी भी टेंशन होती रानू का दिल जोर जोर धड़कने लगता मन आशंकाओं से भर उठता , भविष्य कि चिंता 
सताने लगती ,तब सम्बल होता बस ये पेन और कागज़ , पर मन कि उथल पुथल नहीं लिख पाती थी, लगता था कि वो कितने दूर हैं अपनी चिंता लिखकर नाहक ही उन्हें परेशां कद दूंगी … लिख पाती थी बस उनके साथ बिताये पलों कि यादें..........उनसे दुरी में दुःख का  एहसास , हर पल सताने वाली पीड़ा, उनके दिए प्यार भरे तोहफे से आती उनकी खुशबू और  उन्हें देख कर अपने आंसू … पर याद है मुझे जब यही सब उन्होंने ने अपने ख़त मे लिखा था तो फफक कर रो पड़ी थी मैं ,घंटो आँसू बाहती रही। तब समझ आयी उनकी व्यथा , मेरा ऐसा लिखना उन्हें कितना दुःख देता होगा और वो भी वहाँ जहाँ उनका संबल सिर्फ ये पत्र हैं। तबसे मैंने विरह के वेदना कि जगह प्यार लिखना शुरू कर दिया, और आज जब उन खतों को पड़ती हूँ तो मुझे बहुत ख़ुशी होती है कि मैंने ऐसा किया।  

रेवा 

Saturday, February 22, 2014

एक सजा



समझती हूँ
तेरी उदासी
पढ़ सकती हूँ
तेरी आँखों को ,
पर क्या करूँ
माँ हूँ फिर भी
कई बार तेरे सवालों का
तेरी उदासी का
समाधान नहीं कर पाती ,
समय ही
तुझे तेरे सवालों का
जवाब देगा ये जानती हूँ ,
पर तब तक
तुझे दुखी देखना
मेरे लिए एक सजा
से कम नहीं।


रेवा 

Saturday, February 15, 2014

माँ कि व्यथा


क्या बताऊँ सबको
कि मुझे क्या हुआ है
क्यूँ मैं सूखती जा रही हूँ ,
उस माँ कि व्यथा कैसे दिखाऊँ
जिसका मन जब तब
उस शाम को याद कर
रो पड़ता है ,
जिस शाम उसकी
दस साल कि बच्ची की
किसी वहशी ने
अस्मत लूटने की 
कोशिश कि थी ,
हर बार माँ कि आँखों
के सामने बेटी का वो
रोता हुआ चेहरा
आ जाता है ,
जब उसने कांपते कांपते
सारी  बात बतायी और
कहा था ," माँ सब बंद
कर दो , नहीं तो
वो मुझे मार देगा "
उस दिन शायद वो माँ
एक मौत मर गयी थी ,
हर वक्त उसे यही दुःख
सालता है कि वो
अपनी बच्ची कि रक्षा
न कर सकी ,
समय का पहिया
पीछे घूमता भी तो नहीं
कि वो वापस जा कर
सब ठीक कर दे ,
बस दिल रोता रहता है
और जीवन चक्र
चलता रहता है।

रेवा