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Sunday, April 20, 2014

नाराज़

नहीं बन पायी मैं
अपनी कहानी वाली मिनी
बहुत कोशिश की ,
अपने आप को
हर कसौटी मे
खरा साबित करने की ,
पर जाने हर बार
कुछ रह ही जाता है ,
पता नहीं मेरे प्रयास 
मे कमी है या मुझमे  ,
या मेरे नज़रिये मे 
पर जो भी है
बहुत अकेली पड़ गयी हूँ ,
क्यूंकि खुद से नाराज़  हूँ आजकल।


रेवा


15 comments:

  1. स्वयं को खोज लेने को प्रेरित करती कविता की पंक्तियाँ।
    शब्द जैसे ढ़ल गये हों खुद बखुद, इस तरह कविता रची है आपने।

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  2. dil ko chhu gayi ye rachna Rewa...sachh kaha tumne, apne aapko prove karne ke liye jo bhi koshish kare ..hame hamesha kami si mahsoos hoti hai...ye insaan ki fitrat hai. bahut achhi rachna.

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  3. khud ko jab paa lenge tab to duniya hi khatm ho jayegi ...jab tak khud ki talash rahegi jeevn jari rahega ...bahut sundar rachna

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  4. खुद से नाराजगी जल्दी ही दूर होनी चाहिए ... नहीं तो काव्य धरा कहाँ से बहेगी ...

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  5. खुद से ही नाराजगी ....भावुक लेखनी

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  6. खुद से नाराज़ कब तक रहा जा सकता है...बहुत भावमयी रचना...

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  7. आपकी इस उत्कृष्ट अभिव्यक्ति की चर्चा कल रविवार (27-04-2014) को ''मन से उभरे जज़्बात (चर्चा मंच-1595)'' पर भी होगी
    --
    आप ज़रूर इस ब्लॉग पे नज़र डालें
    सादर

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