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Thursday, May 1, 2014

मेरे सवाल ?


शाम को घोंसलों कि तरफ़ उड़ान
भरने वाले पछियों के जीवन में
नयी सुबह की चहचाहट
जरूर आती है ,
पर घड़ी की टिकटिक
के साथ ,
हर काम करती एक स्त्री के
जीवन में सुबह क्यों नहीं आती ?

घर के हर सामान को
प्यार से सजाने वाली कि
ज़िन्दगी ,
क्यूँ प्यार से खाली रहती है ?

उसके मन के भावों को
क्यों उसके अपने
नहीं पढ़ पाते ?

क्यों जब वो अपने बारे
में सोचती है तो
उसे ऐसा लगता है की
वो मात्र एक यन्त्र है ?

जिसे रुकना तो दूर
बिगड़ने का भी हक़ नहीं ?
और "दिल तो यन्त्र में
होता ही नहीं" !

जब वो सबको खुश रखने की
भरपूर कोशिश करती है तो
क्यों उसे बोला जाता है की ,
"खुद को खुद से खुश रखना सीखो "
फिर घर परिवार पति बच्चों
का क्या मतलब ?
जो उसके सबसे ज्यादा
अपने होते हैं।

"क्या आप दे सकते हैं मेरे इन सवालों के जवाब "?

रेवा 


17 comments:

  1. रेवा जी सच का दर्पण दिखा दिया है आपने .

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  2. इन प्रश्नों के उत्तर मिल जाएँ तो दर्द ही नहीं रहेगा ... संवेदनशील प्रस्तुति

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  3. आपकी लिखी रचना शनिवार 03 मई 2014 को लिंक की जाएगी...............
    http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  4. किससे कह रहीं हैं उत्तर देनो को ,अपने सुख-सुविधा के आगे जो कुछ सोचना नहीं चाहता ?

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  5. बहुत सार्थक कविता ... स्त्री सबसे बड़ी मजदूर होती है ..

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  6. shaayad koi de paaye .... kyun ki main to khud varsho se anuttarit hoon ....
    God Bless you

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  7. कुछ प्रश्नों के उत्तर देना कठिन होते हैं। बहुत सुंदर लिखा है रेवा जी

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  8. aap sabka bahut bahut shukriya, par sawal wahin ka wahin

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