Pages

Wednesday, May 28, 2014

तेरी आवाज़




मैं हर रोज़ नए - नए
मनसूबे बनाती हूँ
तुमसे बात न करने के ,
पर कामयाब हो ही नहीं पाती
कभी दिल कमज़ोर पड़ जाता है
कभी दर्द ज्यादा बढ़ जाता है ,
कभी मौसम मना लेता है
कभी तेरा प्यार याद आ जाता है
कभी तुम्हारी कही गयी बातें ,
कभी वो समझ जिससे हमेशा
मेरी बात मुझसे पहले ही
पहुंच जाती है तुम तक............
शायद
तेरी आवाज़
मेरी आदत
और आदत
ज़िन्दगी बन गयी है अब।


रेवा

11 comments:

  1. wah ji wah ....aap bulaye aur ham naa aaye ....!

    bahut sundar

    ReplyDelete
  2. wah wah kya baat hai..very romantic voice....

    ReplyDelete
  3. वाह जी वाह ..... एक ही बात सबके मन मे आ रही ना

    ReplyDelete
  4. बहुत ही सुन्दर..
    बहुत ही प्यारी रचना.....

    ReplyDelete
  5. 'और आदत जिंदगी बन गई अब " बहुत सुन्दर !
    new post ग्रीष्म ऋतू !

    ReplyDelete
  6. सुन्दर भाव...बहुत खूब...

    ReplyDelete
  7. वाह..बहुत भावपूर्ण रचना...

    ReplyDelete
  8. मेरी आदत,और आदत ज़िन्दगी गयी है अब।
    वाह ,सुन्दर भावपूर्ण रचना साभार

    ReplyDelete
  9. बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........

    ReplyDelete