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Saturday, August 23, 2014

जुड़ाव


वो जो ऊपर बैठा है न
जाने कैसे कैसे खेल रचता है ......
अचानक किस-किस से मिला
देता है ,
जीवन यूँ भी तो जीते रहते थे हम
उतार चढ़ाव सहते रहते थे हम
पर जाने क्यों
कभी किसी ऐसे
इंसान से मिला देता है की
लगता है आज तक कैसे
जी रहे थे हम ,
उसके साथ की तब
हर मोड़ पर जरूरत
महसूस होने लगती है,
समझ ही नहीं आता
इतने दिनों कैसे संभाल
रहे थे हम ,
चाह कर भी उस इंसान से
दुरी नहीं बना पाते,
शायद जुड़ाव सिर्फ
जरूरत से नहीं
बल्कि एहसासों से
कर लेते हैं हम .............

"दिल की ये कैसी हसरत हो गयी
तेरी मुझे ये कैसी आदत हो गयी
यूँ मिलने को तो मिल जाते हैं कई लोग
पर तू रूह से जुड़ा है
तुझसे मुझे मुहब्बत हो गयी "

रेवा

15 comments:

  1. बहुत ही बेहतरीन रचना

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  2. बहुत सुंदर प्रस्तुति.
    इस पोस्ट की चर्चा, रविवार, दिनांक :- 24/08/2014 को "कुज यादां मेरियां सी" :चर्चा मंच :चर्चा अंक:1715 पर.

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  3. कभी-कभी ऐसा भी होता है !

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  4. सुंदर प्रस्तुति

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  5. ऊपरवाला और प्रेम - दोनों होकर भी अदृश्य, और एक शक्ति

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  6. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

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  7. आपकी इस रचना का लिंक दिनांकः 25 . 8 . 2014 दिन सोमवार को I.A.S.I.H पोस्ट्स न्यूज़ पर दिया गया है , कृपया पधारें धन्यवाद !

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  8. होता है-होता है... :)

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  9. बहुत सुंदर लगी आपकी रचना

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