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Tuesday, October 28, 2014

वो शाम



तुम्हारी जादुई बातों ने
फिर याद दिला दिया
वो सिन्दूरी झील के
किनारे की शाम ,
फिर एहसास हो आया
उस मिलन का
जिसमे सिर्फ
मैं और तुम
हाँथो मे कॉफ़ी लिए
बस अपलक एक दूसरे
को निहार रहे थे ,
उस दिन पता चला
कुछ अधूरा था मुझमे
जो तुमसे मिल कर
पूरा हो गया ,
ज़िंदगी मे ये कुछ देर की
मुलाकात ऐसा महसूस करा
सकती है
ये कभी सोचा न था ,
अब कभी तुमसे दुबारा
मिलना होगा की नहीं
ये तो खुदा जाने
पर उस मिलन की
खुशबु आज भी
मेरे रोम रोम में बसी है..........

रेवा

Thursday, October 9, 2014

मुट्ठी भर एहसास



मुट्ठी भर एहसास
जो हर बार
भर लेती हूँ ........
फिसल जाती है
रेत की तरह
उँगलियों के कोरों से .......
थाम लेती हूँ
सर्द आँहों को
हर रात ………
ताकि हर सुबह
फिर भर सकूँ
एहसासों को ……
जाने कब तक
चलेगा ये सिलसिला…...
अब तो आस  ने भी
हवा के साथ
रुख बदलना
शुरू कर दिया है

रेवा