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Monday, January 5, 2015

पिया के घर चली...........




माँ के आँगन की कली
ममता की छाँव मे पली
बन के दुल्हन आज
पिया के घर चली ……

गहनों से कर के श्रृंगार
सितारों से सजी है माँग
प्यार से भरी है मेहंदी
एहसासों का पहन के जोड़ा
पिया के घर चली ………

भाई के लाड़ से सजी है डोली
माँ बाप के आशीर्वाद से
भरी है झोली ,
आँखों मे लगा के
अरमानों का सुरमा
वो आज
पिया के घर चली...........

बिलखते हैं भाई बेहेन
तड़पते माँ बाप
रोती है सखियाँ
पर वो उन सबको छोड़
पिया के घर चली………

धन्य है वो माई
जिसने बेटी जाई
अपने आँगन को कर के सूना
बना दिया किसी और के घर का गहना ……।

रेवा 

14 comments:

  1. बाबुल का ये घर गोरी
    बस कुछ दिन का ठिकाना है

    सच कितना सुहाना वक्त होता था वो……भावो को बहुत सुन्दरता से बाँधा है……शानदार अभिव्यक्ति।

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  2. .शीर्षक में ही जैसे यादें और प्यार घुला हुआ मिला ..पूरी कविता दिल की तह तक जाती है और बहुत सी यादों से भिगो जाती है ..
    आपकी लेखनी को सलाम दी !

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    1. Bahut bahut shukriya sanjay....abhi bahut sikhna hai mujhe

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  3. बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति ।।

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  4. बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना

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  5. शानदार, सार्थक, मनमोहक प्रस्तुति...

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  6. Replies
    1. Beti ke mata pita vakayi dhany hote hai.... Bahut marmsparshi rachna....

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  7. Vah kya bat hai?
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    Vinnie Didi,

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  8. दिल को छू लेने वाली कविता... शब्द तो लवों पर ठहर ही गए हैं जैसे
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