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Monday, March 23, 2015

अपनी पहचान..........


नहीं चाहिये मुझे
तुम ,तुम और तुम 
नही मानूँगी अब मैं 
सबकी बात ,
सिर्फ़ इसलिए की मुझे 
कहलाना है 
एक अच्छी बहु 
ननद ,भाभी और 
वो तमाम ऐसे रिश्ते 
जो बस चुप रहकर 
सुनने और सही 
होते हुए भी अपेक्छा न 
करने से मिलते  है  ,
अब मुझे भी चाहिए 
अपना आत्मसम्मान 
अपने काम और बातों 
मे  आत्मसंतुष्टि ,
और अपनी पहचान.......... 

रेवा 


27 comments:

  1. रिश्ते अपनी जगह पर आत्मसम्मान जरूरी है ... अपनी पहचान जरूरी है ...

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  2. आत्म सम्मान के बिना हर उपलब्धि बेमानी है ! सुन्दर रचना !

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  3. बहुत सुंदर ...ये तो अधिकार है और सबको मिलना ही चाहिए

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  4. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (24-03-2015) को "जिनके विचारों की खुशबू आज भी है" (चर्चा - 1927) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    शहीदों को नमन करते हुए-
    नवसम्वत्सर और चैत्र नवरात्रों की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  5. सुन्दर अभिव्यक्ति रेवाजी

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  6. कितना अजीब सा है न जो दुनिया को पहच्चन देती है उसकी खुद की पहचान लोग छीनना चाहते हैं।
    सशक्त अभिव्यक्ति।

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  7. सुन्दर शब्द रचना.............. रेवा जी

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  8. खूबसूरत रचना।

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  9. पता नहीं क्यों, लोग भूल से जाते हैं, कि आत्मसंतुष्टि, आत्मसम्मान - विहीन मानव अथवा मानवी किसी भी रिश्ते को सफलतापूर्वक निभाने में असमर्थ होते हैं. अच्छी बहु/ननद आदि के नाम पर रिश्तों की पूरक अपेक्षाओं का हनन, चुप्पी की प्रत्याशा... घोेेर विडंबना है.
    अत्यंत सार्थक रचना रेवा जी

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    1. sahi kaha anusha ji.....hume jagna hi hoga....shukriya

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  10. अच्छी रचना...अंतिम पंक्तियाँ तो बहुत ही अच्छी लगीं.

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