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Monday, October 19, 2015

समुन्द्र


जब दूर दूर समुन्द्र पर
नज़र पड़ती है
तो प्रतीत होता है
समुन्द्र क्षितिज से
मिलने को बेताब है
पर उसकी
नियति ही है विरह .......

इसलिए तो
हर बार कोशिशें
नाकाम  हो जातीं हैं
और समुन्द्र की
लहरों को
किनारे की पनाह मिलती है !!!

रेवा

9 comments:

  1. सच अपनी परिधि नहीं भुलानी चाहिए ...अपने करीब कौन है उनकी क़द्र जरुरी है ,,
    बहुत बढ़िया

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  2. लाजवाब अभिव्यक्ति ।

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    1. राजपूत जी शुक्रिया

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  3. बहुत सुंदर .विजयादशमी की शुभकामनाएं !
    नई पोस्ट : बीते न रैन

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  4. बेहतरीन प्रस्तुति

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  5. वक़्त
    ना जाने कब कैसे वक़्त बे साख्ता उड़ा
    जैसे पंख फैलाये आसमां में फाख्ता उड़ा
    मिट गयी ना जाने कैसी कैसी हस्तियां
    जब जब जिससे भी इसका वास्ता पड़ा
    बदलने चले थे कई सिकंदर और कलंदर
    ख़ाक हुए जिसकी राह मैं यह रास्ता पड़ा
    मत कर गुरूर अपनी हस्ती पर ऐ RAAJ
    कुछ पल उसे देदे सामने जो फ़कीर खड़ा

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