Pages

Saturday, October 15, 2016

अधूरी कविता




हम औरतें 
कवितायेँ लिखते-लिखते 
कब रसोई में जा कर सब्जी 
बनाने लगती हैं  
आभास ही नहीं होता ......
और ज़ेहन मे पड़ी 

अधूरी कविता
पक जाती है सब्जियों के साथ ....
रात जब सोने जाती हैं
ख्वाबों में फिर बुनती हैं कविता
पर सुबह होते तक
कुछ शब्द ही रहते हैं
स्मृति में   

जो
नाश्ते में परोस देती हैं सबको  ........
दोपहर होते ही 

हमारी अभिव्यक्ति फिर 
नयी उड़ान भरने लगती है.......
पर कभी अपनी थकन में
कभी दिल की जलन में
हर बार  

दब कर रह जाती है 
कविता !!!!!

15 comments:

  1. बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति।

    ReplyDelete
  2. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "डॉ॰ कलाम साहब को ब्लॉग बुलेटिन का सलाम “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

    ReplyDelete
  3. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 17 अक्टूबर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
  4. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल सोमवार (17-10-2016) के चर्चा मंच "शरद सुंदरी का अभिनन्दन" {चर्चा अंक- 2498} पर भी होगी!
    शरदपूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete
    Replies
    1. shukriya Mayank ji abhar......apko bhi sharadpurnimi ki haldik badhai

      Delete
  5. रेवा जी, बिल्कुल सही कहा आपने। महिलाओं की अपनी मर्यादाएं है...उन्हें अपने खुद से ज्यादा अपने परिवार का ख्याल रखना पडता है। सवाल सिर्फ ख्याल रखने का नही होता है, सभी का काम बराबर करने पर भी उसके अपने वक्त पर उसका अधिकार नही होता! उसको इस बात ख्याल रखना पडता है कि मैंने यदि इस वक्त हाथ में एक मिनट के लिए भी पेन ले लिया तो घर के बाकि सदस्य बुरा न मान जाए!

    ReplyDelete
    Replies
    1. jyoti ji mere blog par aane kay liye shukriya.....sach kaha apne

      Delete
  6. वाह, आपने एक गृहणी के मर्म को अच्छे से कविता ही कविता में कह दिया है!!

    ReplyDelete
  7. बहुत सुन्दर

    ReplyDelete