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Monday, January 2, 2017

दिल की चाहत







हँस के
हम अपना हर
दर्द छिपा लेते है
हमे प्यार है
तुमसे
ये बात हम अपनी
निग़ाहों से भी बचा लेते हैं 

तुम्हें इंकार तो नहीं
पर मैं अपने
रिश्तों से बंधी
हर बार इनकार
कर देती हूँ 

और दिल की चाहत
अपने आहों मे भर
रूह के हवाले
कर देती हूँ


रेवा

7 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (03-01-2017) को "नए साल से दो बातें" (चर्चा अंक-2575) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    नववर्ष 2017 की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. सुन्दर शब्द रचना
    नव वर्ष की मंगलकामनाएं
    http://savanxxx.blogspot.in

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    1. shukriya savan ji....apko bhi nav varsh ki dheron shubhkamnayein

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  3. रूह का प्यार ...अमर है

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