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Monday, March 27, 2017

जी करता है





आज खुद को गले
लगा कर सोने को
जी करता है ,
अपने कंधे पर
सर रख कर
रोने को
जी करता  है ,
अपने आंसुओं से
शिवालय धोने को
जी करता  है ,
समुन्द्र के रेत से
बनाया था जो आशियाना
उसे समुन्द्र को
सौंपने का
जी करता है ,
बिन पहचान जीते
रहे आज तक
अब अपनी पहचान
के साथ मरने को
जी करता है ,
आज खुद को गले
लगा कर सोने को
जी करता है..........

रेवा


Wednesday, March 22, 2017

वो देखो फ़ाग आया





वो देखो फ़ाग आया 

संग अपने अनेकों
रंग लाया
पेड़ों को
फूलों से नहलाया 
वो देखो फ़ाग आया

गोरी के गालों को
रंगों से सहलाया
आँखों को हया
का कजरा लगाया 
वो देखो फ़ाग आया

सूनी धरती को
वृंदावन बनाया
राधा और कान्हा के
प्यार से सजाया
वो देखो फ़ाग आया !!!!!

रेवा 


Wednesday, March 8, 2017

अंतिम ज़िद





अपने बारे में
आज सोचने
बैठी तो....
कुछ समझ ही नहीं आया
मुझे क्या पसंद 
क्या नापसंद
कुछ याद ही नहीं ???
एक वो ज़माना था
जब माँ खिचड़ी

या मेरी नापसंद की 
कोई भी चीज़ 
बनाती थी तो मैं
हल्ला कर के सारा
घर सर पर उठा लेती थी
और एक आज
जो बन जाता है
खा लेती हूँ ....
न किसी चीज़ की
ज़िद न कोई
शिकायत ....... 
अब खीर बता कर
न कोई
दूध चावल
खिलाने वाला ....
न गली पर
कोई आइसक्रीम वाला
आवाज़ देने वाला
न ही मदारी
का खेल कहीं
नज़र आता....
न गोद में सर रख कर
अब कोई
पुचकारने वाला...
न बीमारी में
रात भर सिरहाने
बैठ सर सहला
हनुमान चालीस पढ़ने वाला

माँ फिर से मुझे
मेरा बचपन लौटा दो न
बस ये एक अंतिम ज़िद
पूरी कर दो माँ !!

रेवा