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Monday, March 27, 2017

जी करता है





आज खुद को गले
लगा कर सोने को
जी करता है ,
अपने कंधे पर
सर रख कर
रोने को
जी करता  है ,
अपने आंसुओं से
शिवालय धोने को
जी करता  है ,
समुन्द्र के रेत से
बनाया था जो आशियाना
उसे समुन्द्र को
सौंपने का
जी करता है ,
बिन पहचान जीते
रहे आज तक
अब अपनी पहचान
के साथ मरने को
जी करता है ,
आज खुद को गले
लगा कर सोने को
जी करता है..........

रेवा


18 comments:

  1. इंसान के अपनी खुद की पहचान जरुरी है किसी दूसरे की पहचान खुद की पहचान ज्यादा दिन तक नहीं रहती

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  2. दिनांक 28/03/2017 को...
    आप की रचना का लिंक होगा...
    पांच लिंकों का आनंदhttps://www.halchalwith5links.blogspot.com पर...
    आप भी इस चर्चा में सादर आमंत्रित हैं...
    आप की प्रतीक्षा रहेगी...

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (28-03-2017) को

    "राम-रहमान के लिए तो छोड़ दो मंदिर-मस्जिद" (चर्चा अंक-2611)
    पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    विक्रमी सम्वत् 2074 की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. आज सब कुछ खोने को
    जी करता है
    ज़िंदगी में जीत के ख़ुशी
    गम भुलाने को जी करता है
    कर न सका हासिल उस मंज़िल को
    सोचकर रोने को जी करता है।

    बहुत ही मार्मिक वर्णन सुंदर रचना ,मीठी अनुभूतिओं से ओत-प्रोत

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  5. ज़रूरी है ख़ुद कि पहचान ... नहीं तो मन ख़ुद को भी क़बूल
    नहीं करता ...

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  6. हम बस खुद को ही नहीं पहचान पाते....... उस पर भी हमें खुदा होने का भ्रम बना रहता हैं।

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  7. सुन्दर रचना

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  8. खुद से प्यार है तो पहचान भी है।

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