अजीब दस्तूर है तुम्हारा
अजीब दस्तूर है तुम्हारा
ऐ सनम
दिल में एहसास
और होठों पर
चुप्पी रखते हो .....
बड़े मगरूर हो
प्यार भी करते हो
और दुरी भी
कमाल की रखते हो......
इतने मौका परस्त हो
जब हालात
नागवार हो जाते हैं
तब ही याद करते हो .....
बड़े ज़ालिम हो
न खुद जीते हो
न हमे जीने देते हो .....
अजीब दस्तूर है तुम्हारा ए सनम !!!
...क्या खूब लिखा..आपने बहुत ही अच्छी एवं एक ख़ास एहसास से लैस रचना पढ़ के बहुत ही ख़ुशी हुई
ReplyDeleteshukriya sanjay
Deleteबहुत खूब
ReplyDeleteshukriya onkar ji
Deleteabhar mayank ji
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