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Tuesday, June 12, 2018

तुम्हारी कविता



एक दिन यूँ ही 
अलसायी सी 
दोपहर में 
तुम्हारी कविताओं की 
किताब हाथ में आ गयी 
जिसमे तुमने लिखी थी 
मेरी ये सबसे पसंदीदा 
कविता 

बारिश की सौंधी ख़ुश्बू
तुम्हे  किसी भी 
इत्र से ज्यादा पसंद थी ,
घंटों बैठ मेरे साथ 
बरसात को निहारा करती थी 
पानी का धरती पर 
गिरना और फिर 
उसी मे मिल जाना
तुम्हें  फिलोस्फिकल लगता,

टप टप पत्तों से झरते
मोती से
अपनी अंजुरी भर
मुझ पर लुटाती ,
तो कभी अपने बालों को
गीला कर
मेरे एहसासों को भिगो देती ,

कभी यूँही
मेरे कंधे पर सर रख
अनगिनत बातें करती .....
पर अब न तुम हो
न मेरे शहर में वो बरसात ....
काश ! वो बरसात
लौट आये
काश ! तुम फिर
अपनी कागज़ की
कश्ती में कहीं से आ जाओ
और भिगा दो मेरे
सुप्त एहसासों को !!!

रेवा

8 comments:

  1. इधर बरसात के झड़ी लगी उधर प्यारभरे बीते पलों की
    बहुत सुन्दर

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  2. आभार यशोदा बहन

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (13-06-2018) को "कलम बना पतवार" (चर्चा अंक-3000) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    राधा तिवारी

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  4. भावपूर्ण रचना .. बारिश की बूंदों की तरह ही मन को तारो ताज़ा करती हुई

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  5. शुक्रिया अमित जी

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  6. वाह रेवा दी क्या बात है ... आज तो अलग ही रंग दिख रहा है .......बहुत ही प्यारे और गुनगनाने लायक कविता !

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