इस कोशिश में लगा ......
जबसे मैंने तुम्हें जाना है
तुम्हें दूसरों के लिए ही
जीते देखा है
माँ , बाप , बीवी , बच्चे
भाई ,बहन
चलो माना ये दूसरे नहीं हैँ
पर इनमे कहीं तो तुम्हारा भी
एक कोना होना चाहिए न
ऐसे जीते जीते तुम एकदम
अलग थलग बिल्कुल अकेले
हो गए
बस काम और घर
बोलना भी कम कर दिया
सबकी जरूरतें पूरी करते रहे
ख़ुद को दरकिनार कर
ये भी अच्छी बात है
पर ये क्यों भूल जाते हो
अपने लिए सिर्फ तुम जवाबदेह हो
सुनो.....
एक बात मानोगे मेरी
थोड़े से स्वार्थी बन जाओ
ख़ुद के लिए जीयो
ख़ुद को गले लगाओ
ख़ुद प्यार करो
अपने मन पसंद काम करो
फिर देखो दुनिया कितनी
सुंदर लगेगी तुम्हें......
जबसे मैंने तुम्हें जाना है
तुम्हें दूसरों के लिए ही
जीते देखा है
माँ , बाप , बीवी , बच्चे
भाई ,बहन
चलो माना ये दूसरे नहीं हैँ
पर इनमे कहीं तो तुम्हारा भी
एक कोना होना चाहिए न
ऐसे जीते जीते तुम एकदम
अलग थलग बिल्कुल अकेले
हो गए
बस काम और घर
बोलना भी कम कर दिया
सबकी जरूरतें पूरी करते रहे
ख़ुद को दरकिनार कर
ये भी अच्छी बात है
पर ये क्यों भूल जाते हो
अपने लिए सिर्फ तुम जवाबदेह हो
सुनो.....
एक बात मानोगे मेरी
थोड़े से स्वार्थी बन जाओ
ख़ुद के लिए जीयो
ख़ुद को गले लगाओ
ख़ुद प्यार करो
अपने मन पसंद काम करो
फिर देखो दुनिया कितनी
सुंदर लगेगी तुम्हें......
रेवा
बहुत खूब
ReplyDeleteआपका मेरे blog पर स्वागत है ....शुक्रिया
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (26-06-2018) को "मन मत करो उदास" (चर्चा अंक-3013) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार
Deleteआदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' २५ जून २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
ReplyDeleteटीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति मेरा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'
निमंत्रण
विशेष : 'सोमवार' २५ जून २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने साप्ताहिक सोमवारीय अंक के लेखक परिचय श्रृंखला में आपका परिचय आदरणीय 'प्रबोध' कुमार गोविल जी से करवाने जा रहा है। जिसमें ३३४ ब्लॉगों से दस श्रेष्ठ रचनाएं भी शामिल हैं। अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
आभार
Deleteआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन जन्म दिवस - विश्वनाथ प्रताप सिंह और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteमजबूरियाँ के बोझ तले ख़ुद को देखना कहाँ सम्भव होता है ...
ReplyDeleteपर ज़रूरी है ख़ुद को देखना ... अपनी परवा करना ...
गहरी रचना ...
बहुत बहुत शुक्रिया digamber जी
Deleteबहुत खूब ! रेवा तिब्रेवाल जी, खुद की फ़िक्र करने वाले स्वार्थी नेता तो बहुत हैं. आप सबको नेता क्यों बनाना चाहती हैं?
ReplyDeleteज़िन्दगी से दूर चले गए लोगों को ज़िन्दगी के करीब लाने की कोशिश है ....अपने लिए सोचने वाले नेता नहीं हो जाते
Delete