होता है ऐसा भी
के कोई प्यार
जता जता के
हार जाता है
पर हम उससे
प्यार करते हुए भी
उसकी
कद्र नहीं कर पाते
और अपने प्यार की
गहराई
समझ नहीं पाते
शायद मन के
कोने में ये बात
रहती है की
वो कहाँ जाने वाला है
प्यार करता है न
जब चाहूँ मिल जायेगा
मुझे
पर जब हालात
बदलते हैं
और वो प्यार वो साथ
छूट जाता है
तब
आंसुओं के सैलाब के
अलावा कुछ नहीं बचता
#रेवा
प्यार कोई सौदा तो नहीं जो जब चाहे खरीद लाये उसे। सौदा बराबर का हो तो कोई दिक्कत नहीं वर्ना पछताने के अलावा कुछ नहीं मिलता
ReplyDeleteमनोभावों की सुन्दर प्रस्तुति
शुक्रिया कविता जी
ReplyDeleteबेहतरीन रचना
ReplyDeleteshukriya anuradha ji ....
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार १३ जुलाई २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
नमस्ते ....शुक्रिया
Deleteआदरणीय रेवा जी ,बहुत ही अनमोल बात लिखी आपने।सचमुच जब समय रेत की तरह फिसल जाता हैं कहीं जाकर मन जान पाता है कि कोई कितना अनमोल था ।
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है ....बहुत शुक्रिया
Deleteबहुत गहराई से विश्लेषण कर रचा काव्य बहुत सुंदर
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत .....बहुत शुक्रिया
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (14-07-2018) को "सहमे हुए कपोत" (चर्चा अंक-3032) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार मयंक जी
Deleteशुक्रिया
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteआभार
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