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Monday, September 17, 2018

एहसासों का ख़त


भेजा था मैंने
यादों के डाकिये
के साथ तुझे
अपने एहसासों का ख़त
पर वो बैरंग
वापस आ गया ,

यादों ने बहुत ढूंढा
हर गली हर
शहर तलाश किया
पर वो पता जो
उस ख़त पर लिखा था
वो नहीं मिला ,

लगता है तुमने अपना
घर बदल लिया है ..
पर मैं तो वहीं हूँ उसी
पुराने घर, पुराने पते पर
बदलना मेरी फितरत नहीं 
ये तो जानते ही हो न तुम 

पर लगता है 
याद रखना तुम्हारी भी
आदत नहीं
ये भी अब जान गई हूँ मैं

लेकिन कोई बात नहीं 
मेरे एहसास जो तुमसे जुड़े हैं 
उन्हें सहेज कर रख लिया है 
जो मुझे सुकून देते रहेंगे 
पर तुम अब ताउम्र 
इस सुकून से महरूम रहोगे !!!!






7 comments:

  1. वाह बेहद खूबसूरत रचना

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  2. यादों का क्या है जी
    यादे तो चाहत पैदा करती है और उस चाहत में निरासा पागलपन.

    जॉन एलिया साब का शेर है कि
    " बा'द भी तेरे जान-ए-जाँ दिल में रहा अजब समाँ
    याद रही तिरी यहाँ फिर तिरी याद भी गई"

    बेकरारी से वहशत की जानिब 

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  3. अहसास कैसे भी हों चाहे सुकून देने वाले या दर्द देने वाले ,बैचैन तो करते ही हैं
    बहुत सुन्दर रचना रेवा जी

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