भेजा था मैंने
यादों के डाकिये
के साथ तुझे
अपने एहसासों का ख़त
पर वो बैरंग
वापस आ गया ,
के साथ तुझे
अपने एहसासों का ख़त
पर वो बैरंग
वापस आ गया ,
यादों ने बहुत ढूंढा
हर गली हर
शहर तलाश किया
पर वो पता जो
उस ख़त पर लिखा था
वो नहीं मिला ,
लगता है तुमने अपना
घर बदल लिया है ..
पर मैं तो वहीं हूँ उसी
पुराने घर, पुराने पते पर
बदलना मेरी फितरत नहीं
ये तो जानते ही हो न तुम
पर लगता है
याद रखना तुम्हारी भी
आदत नहीं
ये भी अब जान गई हूँ मैं
आदत नहीं
ये भी अब जान गई हूँ मैं
लेकिन कोई बात नहीं
मेरे एहसास जो तुमसे जुड़े हैं
उन्हें सहेज कर रख लिया है
जो मुझे सुकून देते रहेंगे
पर तुम अब ताउम्र
इस सुकून से महरूम रहोगे !!!!
वाह बेहद खूबसूरत रचना
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteयादों का क्या है जी
ReplyDeleteयादे तो चाहत पैदा करती है और उस चाहत में निरासा पागलपन.
जॉन एलिया साब का शेर है कि
" बा'द भी तेरे जान-ए-जाँ दिल में रहा अजब समाँ
याद रही तिरी यहाँ फिर तिरी याद भी गई"
बेकरारी से वहशत की जानिब
जी
Deleteअहसास कैसे भी हों चाहे सुकून देने वाले या दर्द देने वाले ,बैचैन तो करते ही हैं
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना रेवा जी
शुक्रिया
Deleteबहुत सुन्दर
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