मैं पतंग नहीं
बनना चाहती
जिसकी डोर
किसी और के
हाथ में हो
हवा का रुख
जिधर हो
उधर उसे
डोर से बंधे ही
उड़ना पड़ता हो
कभी कभी इसी
प्रयास में गिर भी
जाती है अंधेरी
गुफ़ा में
मैं चिड़िया बनना
चाहती हूँ
जो अपनी उड़ान
अपने हिसाब से
तय करे
और उड़ सके इस
उन्मुक्त आकाश में ......
#रेवा
#औरत
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (23-09-2018) को "चाहिए पूरा हिन्दुस्तान" (चर्चा अंक-3103) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार
Deleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteशुक्रिया
DeleteShukriya
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