वो जीता है सालों से
उसकी तस्वीरों
उसके ख्यालों और
अपने रंगों के साथ
उसके ख्यालों और
अपने रंगों के साथ
उसके लिए
वो अभी भी इस
दुनिया का हिस्सा है
उसकी अलमारी
उसकी किताबें
उसकी तस्वीर
सब जिंदा है
वो दीवारों से भी
उसकी बातें
कर लिया करता है
कमरे में अब भी
उसकी खुश्बू
मौज़ूद है
जो उसे रूहे सुखन
जो उसे रूहे सुखन
देती है
वो घर उसकी यादों
का मक़बरा नहीं है
जैसा की लोग
कहते हैं
बल्कि उन दोनों
के प्यार का घोंसला है ....
बल्कि उन दोनों
के प्यार का घोंसला है ....
#रेवा
#इमरोज़
##अमृता के बाद की नज़्म
बहुत सुंदर 👌👌
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (11-09-2018) को "काश आज तुम होते कृष्ण" (चर्चा अंक-3084) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार
Deleteवाह
ReplyDeleteआभार
Deleteबहुत कसक भरी, बहुत टीस भरी कविता ! अमृता प्रीतम और इमरोज़ की प्रेमकथा वाक़ई सदियों तक याद की जाएगी. वह किसी मक़बरे में क़ैद नहीं हो सकती, वह तो हर आशिक़ के दिल में हमेशा ज़िन्दा रहेगी.
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteशुक्रिया
ReplyDeleteI enjoyeed reading your post
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